क्या बदला है IPC से BNS में?
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 378 में चोरी को परिभाषित किया गया था। लेकिन अब, 2023 में लागू भारतीय न्याय संहिता (BNS) में इस अपराध को धारा 303 के तहत रखा गया है। जबकि अपराध की मूल प्रकृति वही है – जैसे अनुमति के बिना संपत्ति को बुरी नीयत से हिलाना – लेकिन बीएनएस ने इसमें कुछ नए सुधारात्मक प्रावधान जोड़े हैं।
यह लेख समझाता है कि धारा 303 के तहत चोरी की परिभाषा, दंड, और इसके सुधारात्मक दृष्टिकोण (जैसे सामुदायिक सेवा) में क्या बदलाव आया है।
धारा 303, BNS के अंतर्गत चोरी की परिभाषा
धारा 303 (1) के अनुसार: अगर कोई व्यक्ति बिना अनुमति और दुर्भावना से किसी अन्य व्यक्ति की चल संपत्ति को हिलाता है या हटाता है, तो उसे चोरी माना जाएगा।
यह जरूरी नहीं कि वस्तु को चुराकर कहीं ले जाया गया हो, सिर्फ उसे बिना अनुमति “हिलाना” ही अपराध की शुरुआत है।
धारा 303 की 5 कानूनी व्याख्याएं
- अगर कोई वस्तु पृथ्वी से जुड़ी हुई है, तो वह चोरी के दायरे में नहीं आती। लेकिन जैसे ही वह पृथ्वी से अलग होती है, वह चोरी के लिए पात्र बन जाती है।
- अगर कोई व्यक्ति किसी वस्तु को अलग करते ही हिलाता है, तो यह भी चोरी मानी जाएगी।
- “हिलाने” का अर्थ है किसी भी प्रकार की शारीरिक गतिविधि जिससे वस्तु अपनी जगह से हटे – जैसे उसे किसी अन्य वस्तु से अलग करना।
- यदि कोई जानवर चोरी किया जा रहा है और उसे हिलाने के लिए कोई दूसरी वस्तु हिलानी पड़ी, तो वह भी “हिलाने” की परिभाषा में आएगा।
- अनुमति दो प्रकार की होती है – स्पष्ट (express) और संकेतात्मक (implied)। जो भी उस संपत्ति का मालिक है या निर्णय का अधिकार रखता है, वही अनुमति दे सकता है।
धारा 303 (2): सज़ा का प्रावधान
- पहली बार चोरी पर:
- 3 साल तक की जेल, या
- जुर्माना, या
- दोनों।
- पुनः अपराध (repetition) की स्थिति में:
- न्यूनतम 1 साल की सख्त सजा (जो 5 साल तक हो सकती है)
- साथ ही जुर्माना भी अनिवार्य होगा।
नया बदलाव: सामुदायिक सेवा की सजा
धारा 303 की खास बात:
अगर चोरी की रकम ₹5,000 तक है और यह व्यक्ति की पहली गलती है, तो कोर्ट आरोपी को जेल न देकर “समाज सेवा” (Community Service) की सजा दे सकता है।
लेकिन शर्तें ये हैं:
- चुराई गई वस्तु वापस करनी होगी या उसकी कीमत चुकानी होगी।
- आरोपी को यह स्वीकार करना होगा कि उसने गलती की है।
सामुदायिक सेवा: दंड से सुधार की ओर
BNS ने पश्चिमी देशों की तर्ज़ पर समाज सेवा को सजा के रूप में शामिल किया है। इसका उद्देश्य है कि आरोपी जेल जाने के बजाय समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझे और सकारात्मक योगदान दे।
सामुदायिक सेवा में शामिल हो सकते हैं:
- सार्वजनिक जगहों पर साफ-सफाई, जैसे सड़क पर कूड़ा उठाना
- अस्पतालों में सहायता कार्य
- गुस्सा नियंत्रण, नशा मुक्ति जैसे सेमिनार में भाग लेना
- स्कूलों या NGO के माध्यम से समाजसेवी कार्य
यह तरीका छोटे-मोटे अपराधों में सुधार की संभावनाओं को बढ़ाता है और पुनर्वास का मानवीय रास्ता दिखाता है।
चोरी के मामलों में लीगल मदद क्यों ज़रूरी है?
- क्या आपको चोरी के झूठे आरोप में फंसाया गया है?
- क्या आपको FIR, बेल या कोर्ट कार्यवाही में कानूनी मदद चाहिए?
- क्या आपको अपनी चोरी की शिकायत दर्ज करानी है?
तो ऐसे मामलों में जल्द से जल्द कानूनी सलाह लेना ज़रूरी है। लीड इंडिया की अनुभवी वकील टीम चोरी जैसे आपराधिक मामलों में आपकी पूरी सहायता करेगी।
निष्कर्ष
धारा 303, BNS का एक ऐसा प्रावधान है जो न केवल चोरी को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है बल्कि पहली बार अपराध करने वालों के लिए सुधार का रास्ता भी देता है। यह आधुनिक और संतुलित दृष्टिकोण बताता है कि कानून सिर्फ दंड नहीं, बल्कि पुनर्वास की दिशा में भी काम कर सकता है।
अगर आप पर चोरी का आरोप है या आपके साथ चोरी हुई है, तो कानूनी सलाह लेने में देर न करें – लीड इंडिया आपके साथ है।
FAQs
1. बीएनएस की धारा 303 क्या है?
यह धारा चोरी को परिभाषित करती है – बिना अनुमति किसी की चल संपत्ति को हिलाना या हटाना।
2. क्या सिर्फ हिलाने से भी चोरी मानी जाएगी?
हाँ, अगर बुरी नीयत से हिलाया गया और अनुमति नहीं थी, तो यह चोरी है।
3. अगर चोरी पहली बार है तो क्या जेल से बच सकते हैं?
हाँ, अगर चुराई गई वस्तु ₹5000 से कम की है और आरोपी पहली बार दोषी पाया गया है, तो कोर्ट सामुदायिक सेवा का आदेश दे सकता है।
4. सामुदायिक सेवा क्या होती है?
यह एक सुधारात्मक दंड है जिसमें आरोपी समाज में सेवा करता है – जैसे सफाई, जागरूकता, शिक्षा आदि।
5. क्या IPC और BNS में चोरी की परिभाषा अलग है?
परिभाषा समान है, लेकिन BNS में सजा के विकल्पों को अधिक मानवीय और सुधारात्मक बनाया गया है।



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