अपराध की रिपोर्ट करना हर नागरिक का अधिकार है और पुलिस का फ़र्ज़। लेकिन कई बार लोग जब थाने जाते हैं तो पुलिस उनकी शिकायत लिखने से मना कर देती है। कभी पुलिस कहती है कि मामला “ज्यादा गंभीर नहीं है”, कभी “आपस में समझौता कर लो”, और कई बार बिना कारण बताए ही FIR दर्ज नहीं करती। ऐसी स्थिति में किसी भी आदमी को गुस्सा, डर और लाचारी महसूस हो सकती है।
लेकिन सच यह है कि कानून आपको कभी अकेला नहीं छोड़ता। अगर पुलिस FIR दर्ज नहीं करती, तो भारतीय कानून में इसके लिए कई तरीके दिए गए हैं।
इस ब्लॉग में हम आपको समझाएंगे कि अगर पुलिस FIR न लिखे, तो आप कानूनी रूप से क्या कर सकते हैं, और कैसे कोर्ट के आदेश से भी FIR दर्ज करवा सकते हैं।
FIR क्या होती है और यह क्यों जरूरी है?
FIR क्या है?
FIR (फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट) वह पहली रिपोर्ट होती है जो किसी संज्ञेय अपराध की जानकारी पुलिस को देने पर दर्ज की जाती है:
- यह अपराध होने का आधिकारिक रिकॉर्ड बनाती है।
- पुलिस को जांच शुरू करने का अधिकार देती है।
- शिकायतकर्ता के अधिकारों की रक्षा करती है।
- यह साबित करती है कि आपने समय पर शिकायत दर्ज कराई थी।
कब FIR दर्ज करना अनिवार्य है?
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 की धारा 173 के अनुसार, जब शिकायत से यह पता चले कि कोई संज्ञेय अपराध (जैसे चोरी, धोखाधड़ी, मारपीट, रेप, हत्या आदि) हुआ है, तो पुलिस FIR दर्ज करने से मना नहीं कर सकती।
संज्ञेय अपराधों में:
- पुलिस को FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
- पुलिस बिना कोर्ट की अनुमति के जांच कर सकती है।
- पुलिस बिना वारंट के आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है।
जब पुलिस कहती है – “यह नॉन-कॉग्निज़ेबल है”
अगर मामला गैर-संज्ञेय (नॉन-कॉग्निज़ेबल) हो, तो पुलिस सीधे FIR दर्ज नहीं कर सकती। लेकिन उन्हें:
- NC (नॉन-कॉग्निज़ेबल रिपोर्ट) बनानी होती है।
- शिकायतकर्ता को इसकी जानकारी देनी होती है।
- आपको सलाह देनी होती है कि आप भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 की धारा 174(2) के तहत मजिस्ट्रेट के पास जाएँ।
पुलिस FIR दर्ज करने से मना को कर देती है?
- पुलिस कहती है – “यह सिविल मामला है”: कई बार पुलिस मान लेती है कि मामला कॉन्ट्रैक्ट, पैसे या प्रॉपर्टी से जुड़ा है, इसलिए इसे सिविल विवाद बता देती है।
- दबाव या प्रभाव: कभी-कभी स्थानीय लोगों, नेताओं या प्रभावशाली व्यक्तियों के दबाव के कारण पुलिस FIR दर्ज नहीं करती।
- क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) की दिक्कत: पुलिस कह सकती है कि घटना उनके थाने की सीमा के बाहर हुई है, इसलिए वे FIR नहीं कर सकते।
- जानकारी कम होना: कुछ मामलों में पुलिस कहती है कि शिकायत में पर्याप्त जानकारी नहीं है और इसलिए FIR दर्ज नहीं की जा सकती।
- काम का बोझ टालना: दुर्भाग्य से, कई बार पुलिस सिर्फ अतिरिक्त काम से बचने के लिए FIR दर्ज नहीं करती।
- समझौता करने की सलाह देना: जैसे धोखाधड़ी, घरेलू झगड़े या पैसों के मामलों में पुलिस अक्सर कहती है कि “आपस में समझौता कर लो” ।
चाहे वजह कोई भी हो, आपके कानूनी अधिकार पूरे के पूरे बने रहते हैं, और कानून में इसके लिए मजबूत उपाय भी उपलब्ध हैं।
जब पुलिस FIR दर्ज करने से मना कर दे, तुरंत क्या करें?
शांत रहें और पूरी बात नोट करें: सबसे पहले घबराएँ नहीं और तुरंत अपनी डायरी या मोबाइल में लिख लें कि आप किस तारीख और समय पर थाने गए, किस पुलिस अधिकारी से बात हुई, उसका नाम व पद क्या था, उसने FIR क्यों नहीं लिखी और क्या-क्या कहा, साथ ही अपनी शिकायत का छोटा सार भी नोट कर लें। ये सारी जानकारी आगे आपके लिए बहुत काम आएगी।
लिखित शिकायत जरूर दें: हमेशा कोशिश करें कि आप अपनी लिखित शिकायत थाने में जमा कर दें और पुलिस से कहें कि वे आपकी शिकायत रिसीव करके उस पर रसीद या डायरी नंबर दे दें; अगर वे FIR न भी करें तो भी शिकायत प्राप्त करना उनका कर्तव्य है। अगर वे लिखित शिकायत लेने से भी मना कर दें, तब भी घबराएँ नहीं—क्योंकि आपके पास आगे कई कानूनी विकल्प मौजूद हैं।
इलेक्ट्रॉनिक तरीके इस्तेमाल करें: आप अपनी शिकायत ईमेल के जरिए, पुलिस की वेबसाइट या ऑनलाइन पोर्टल पर, व्हाट्सएप (अगर आपके राज्य में स्वीकार किया जाता हो) या फिर रजिस्टर्ड/स्पीड पोस्ट से भी भेज सकते हैं; ये सभी तरीके आपके लिए मजबूत सबूत तैयार करते हैं कि आपने शिकायत समय पर दर्ज कराने की पूरी कोशिश की थी।
जब पुलिस FIR दर्ज नहीं करती—आपके कानूनी उपाय
भारतीय कानून तीन बड़े और प्रभावी उपाय देता है:
- SP (Superintendent of Police) को शिकायत
- मजिस्ट्रेट के पास आवेदन
- सीधा निजी शिकायत केस
उपाय 1: SP को शिकायत – BNSS की धारा 173
अगर थाने की पुलिस FIR दर्ज नहीं करती, तो आप अपनी शिकायत SP, डिप्टी कमिश्नर या कमिश्नर को भेज सकते हैं।
SP अगर शिकायत से संतुष्ट हों, तो वे FIR दर्ज करवाने का आदेश देंगे, खुद जांच कर सकते हैं या मामला दूसरे थाने को ट्रांसफर कर सकते हैं।
शिकायत में क्या लिखना चाहिए?
शिकायत में शामिल करें:
- आपके नाम व संपर्क विवरण
- घटना का पूरा विवरण
- आरोपी के नाम (अगर ज्ञात हों)
- आपके पास मौजूद सबूत
- पुलिस ने FIR कब और किसने मना की
- थाने में दी गई लिखित शिकायत की कॉपी
साथ में लगाएँ:
- आपकी दी गई शिकायत की कॉपी
- इंकार के सबूत (ऑडियो/वीडियो हो तो)
- पोस्ट की रसीदें
शिकायत कैसे भेजें?
आप शिकायत रजिस्टर्ड पोस्ट, स्पीड पोस्ट, ईमेल या सीधे जाकर सबमिट कर सकते हैं। हमेशा उसकी रसीद या सबूत रखें।
क्या-क्या हो सकता है?
- SP FIR दर्ज करवाने का आदेश दे सकते हैं।
- SP जांच शुरू करवा सकते हैं।
- SP आपको बयान के लिए बुला सकते हैं।
- मामला सही थाने में भेज सकते हैं।
- अगर SP भी कोई कार्रवाई नहीं करते, तो अगला उपाय अपनाएँ।
उपाय 2: मजिस्ट्रेट के पास शिकायत – BNSS की धारा 175(3)
इसके तहत आप मजिस्ट्रेट से अनुरोध कर सकते हैं कि वे:
- पुलिस को FIR दर्ज करने का आदेश दें
- जांच शुरू करने का आदेश दें
- जांच की निगरानी करें
- कोर्ट का आदेश बाध्यकारी होता है—पुलिस मना नहीं कर सकती।
मजिस्ट्रेट के पास शिकायत करना ज़रूरी बन जाता जब:
- पुलिस FIR से मना कर दे
- SP भी कार्रवाई न करे
- मामला गंभीर हो
- सबूत सुरक्षित करने जरूरी हों
- आरोपी प्रभावशाली हो
आवेदन में क्या-क्या लगाएँ?
- पूरी घटना का विवरण
- पुलिस की ओर से इंकार का विवरण
- SP को भेजी गई शिकायत की कॉपी
- आपके सभी सबूत
- FIR दर्ज करने का अनुरोध
- एक शपथपत्र (अफिडेविट) – सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अनिवार्य
कोर्ट में क्या प्रक्रिया होती है?
- कोर्ट आपका आवेदन पढ़ता है
- पूछ सकता है: “क्या आपने पहले SP के पास शिकायत दी थी?”
- दस्तावेज़ देखे जाते हैं
- आदेश जारी होता है
- पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश मिलता है
- आदेश की कॉपी आपको मिलती है
कितना समय लगता है?
आमतौर पर कुछ हफ्तों में आदेश मिल जाता है, कोर्ट के काम पर निर्भर करता है।
उपाय 3: मजिस्ट्रेट के सामने निजी शिकायत – BNSS की धारा 223
अगर आप पुलिस जांच नहीं करवाना चाहते, मामला सीधा-सादा है, आपके पास पक्के सबूत हैं या आपको लगता है कि स्थानीय पुलिस पक्षपाती है, तो ऐसी स्थिति में आप सीधे कोर्ट में निजी (प्राइवेट) शिकायत दाखिल कर सकते हैं।
इसमें आप सीधे मजिस्ट्रेट को शिकायत देते हैं:
- फिर कोर्ट आपका बयान लेता है
- गवाहों के बयान लेता है
- सबूत देखता है
- आरोपी को सम्मन जारी कर सकता है
- जरूरत हो तो अतिरिक्त जांच का आदेश दे सकता है
यह कब उपयोगी है?
- धोखाधड़ी के मामले
- कुछ घरेलू हिंसा की स्थिति
- प्रॉपर्टी में घुसपैठ
- धमकी या डराने धमकाने के केस
- साधारण मारपीट
यह तरीका पुलिस की मदद के बिना भी आपराधिक कार्यवाही शुरू कर देता है।
Zero FIR क्या है और कब इस्तेमाल किया जाता है?
Zero FIR वह FIR होती है जिसे आप किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज करा सकते हैं, चाहे अपराध उस थाना क्षेत्र में हुआ हो या नहीं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपको “जूरिस्डिक्शन यानि किस थाना क्षेत्र में अपराध हुआ” जैसी औपचारिकताओं में समय बर्बाद नहीं करना पड़ता। Zero FIR तुरंत रजिस्टर कर ली जाती है और बाद में सही थाना क्षेत्र में ट्रांसफर कर दी जाती है।
Zero FIR खास तौर पर इन स्थितियों में बेहद उपयोगी होती है:
- जब मामला अति गंभीर हो (जैसे दुर्घटना, महिलाओं के खिलाफ अपराध, हिंसा, किडनैपिंग आदि)।
- जब तुरंत कार्रवाई जरूरी हो।
- जब पास का थाना क्षेत्र घटनास्थल से दूर हो।
- जब पीड़ित यात्रा में हो या किसी दूसरे शहर में पहुँचा हो।
Zero FIR का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे पुलिस को फौरन कानूनन कार्रवाई शुरू करनी होती है, और FIR को बाद में सही थाने में भेज दिया जाता है—आपको इधर-उधर दौड़ाया नहीं जाता।
ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2013, सुप्रीम कोर्ट) इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि:
- किसी भी संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर FIR दर्ज करना पुलिस के लिए अनिवार्य है।
- थाना क्षेत्र FIR दर्ज करने में बाधा नहीं बन सकता।
- ऐसे मामलों में जहां तुरंत जांच जरूरी हो, पुलिस को देर नहीं करनी चाहिए और Zero FIR दर्ज करके तुरंत कार्रवाई शुरू करनी चाहिए।
इस फैसले के बाद Zero FIR को कानूनी मान्यता मिली और पुलिस को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया कि पीड़ित व्यक्ति को “गलत थाना” कहकर वापस न भेजा जाए।
जब पुलिस FIR दर्ज करने से मना करे, तब आपको क्या नहीं करना चाहिए?
- पुलिस से झगड़ा न करें
- किसी को रिश्वत न दें
- सिर्फ ज़बानी भरोसे पर न रहें
- गुस्सा न करें
- डरकर शिकायत वापस न लें
- अपनी निजी जानकारी किसी अनजान को न बताएं
निष्कर्ष
पुलिस द्वारा FIR दर्ज करने से मना किया जाना परेशान कर सकता है, लेकिन इससे आपके हौसले कमजोर नहीं होने चाहिए। एक बार पुलिस के “ना” कह देने से आपके अधिकार खत्म नहीं होते और न ही आपकी शिकायत की अहमियत कम होती है। हमारे कानून में ऐसे कई रास्ते दिए गए हैं, जिनसे हर नागरिक अपनी बात आगे बढ़ा सकता है। अगर एक अधिकारी मदद नहीं करता, तो दूसरा ज़रूर करेगा। आप बड़े अधिकारियों के पास जाकर या अदालत की मदद लेकर अपनी शिकायत को आगे बढ़ा सकते हैं। सबसे ज़रूरी है कि आप हिम्मत न हारें, सही जानकारी रखें और कदम-दर-कदम आगे बढ़ते रहें, ताकि आपकी आवाज़ सही जगह तक पहुँच सके।
किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।
FAQs
1. क्या पुलिस FIR दर्ज करने से मना कर सकती है?
नहीं। अगर मामला संज्ञेय अपराध है, तो पुलिस के लिए FIR दर्ज करना अनिवार्य है। इससे आपका अधिकार सुरक्षित रहता है और जांच शुरू होती है।
2. अगर पुलिस कहे “यह सिविल मामला है” तो क्या करें?
अगर अपराध में धोखाधड़ी, मारपीट या कोई आपराधिक तत्व शामिल है, तो FIR दर्ज करनी ही होगी। सिर्फ सिविल होने का कारण FIR से इंकार के लिए मान्य नहीं है।
3. क्या मैं FIR ऑनलाइन दर्ज करा सकता/सकती हूँ?
हाँ, कई राज्यों में ऑनलाइन FIR की सुविधा उपलब्ध है। विशेषकर साइबर अपराध, ऑनलाइन धोखाधड़ी या तत्काल कार्रवाई वाले मामलों में यह सुविधा बहुत उपयोगी है।
4. 173(3) आवेदन कितने समय में दाखिल करना चाहिए?
कोई सख्त समय सीमा नहीं है, लेकिन जितनी जल्दी आवेदन दाखिल करेंगे, उतनी ही जल्दी मजिस्ट्रेट जांच का आदेश दे सकते हैं और FIR दर्ज हो सकती है।
5. क्या मजिस्ट्रेट गिरफ्तारी का आदेश दे सकते हैं?
मजिस्ट्रेट सीधे गिरफ्तारी का आदेश नहीं दे सकते। वे केवल जांच करने और FIR दर्ज कराने का निर्देश दे सकते हैं, गिरफ्तारी पुलिस की जांच और निर्णय पर निर्भर है।
6. क्या वकील होना जरूरी है?
कानूनी रूप से वकील होना अनिवार्य नहीं है। लेकिन कोर्ट में आवेदन या शिकायत दायर करते समय वकील की मदद लेने से प्रक्रिया आसान और प्रभावी बनती है।



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