अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश नहीं माने तो क्या होगा? जानिए कानूनी परिणाम

What can be the punishment for not following the orders of the Supreme Court

भारत का सुप्रीम कोर्ट देश की न्याय व्यवस्था में सबसे ऊँचा और ताक़तवर स्थान रखता है। यह संविधान का रखवाला है और कानून का आख़िरी फैसला करने वाला संस्थान है। इसके आदेश सभी लोगों, सरकारी अफसरों और संस्थानों पर लागू होते हैं। लेकिन अगर कोई सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं मानता, चाहे वह आम आदमी हो, अफसर हो या कोई संस्था, तो क्या होता है?

इस ब्लॉग में हम समझाएंगे कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ना मानने पर क्या-क्या कानूनी नतीजे हो सकते हैं। इसमें हम बताएंगे कि “कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट ” (Contempt of Court) क्या होती है, और कानून के अनुसार इसमें क्या सज़ा हो सकती है।

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश को न मानने का मतलब क्या होता है?

सुप्रीम कोर्ट का आदेश न मानना कई तरीकों से हो सकता है, जैसे:

  • कोई सरकारी विभाग कोर्ट के फैसले को लागू करने से मना कर दे
  • कोई अफसर जानबूझकर आदेश को लागू करने में देर करे
  • कोई व्यक्ति कोर्ट के निर्देशों का पालन न करे
  • कोई कोर्ट की ताकत को मज़ाक उड़ाने या कमजोर करने की कोशिश करे

ऐसे काम कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट माने जाते हैं, जो एक गंभीर अपराध है। इसमें जुर्माना लग सकता है और ज़रूरत पड़ने पर जेल भी हो सकती है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश, निर्णय या आदेश कानून की तरह माने जाते हैं। संविधान के अनुच्छेद 141 के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय सभी अदालतों पर बाध्यकारी होते हैं।

इसका मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश सिर्फ एक राय नहीं, बल्कि एक ऐसा निर्देश होता है जिसे नजरअंदाज करना कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट माना जाता है।

कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट क्या होता है?

कोर्ट की कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट  का मतलब है, कोर्ट के आदेश को न मानना, उसकी इज़्ज़त न करना या उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाना। कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट एक्ट, 1971 के अनुसार कोर्ट की कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट  दो प्रकार की होती है:

सिविल कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट

  • धारा 2(b) के तहत, जब कोई व्यक्ति जानबूझकर कोर्ट के आदेश, फैसला, निर्देश या नोटिस का पालन नहीं करता, तो यह सिविल कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट कहलाता है।
  • सरल भाषा में: अगर कोर्ट ने किसी को कोई काम करने को कहा और वो व्यक्ति उसे जानबूझकर नहीं करता, तो यह सिविल कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट है।
  • उदाहरण: अगर सुप्रीम कोर्ट सरकार को 30 दिनों में पीड़ित को मुआवज़ा देने को कहे और सरकार जानबूझकर ऐसा न करे, तो यह सिविल कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट होता है।
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क्रिमिनल कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट

धारा 2(c) के तहत, जब कोई व्यक्ति:

  • कोर्ट की इज़्ज़त को ठेस पहुँचाता है
  • कोर्ट की कार्यवाही में दखल देता है
  • न्याय मिलने की प्रक्रिया में रुकावट डालता है
  • तो यह क्रिमिनल कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट होता है।

उदाहरण: अगर कोई व्यक्ति जजों के खिलाफ अपमानजनक बातें कहता है या मीडिया/पैसे के ज़रिए किसी मुकदमे को प्रभावित करने की कोशिश करता है, तो यह क्रिमिनल कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट मानी जाती है।

कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट की सज़ा क्या होती है?

अगर कोई व्यक्ति कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट करता है, तो सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 129 और 142 के तहत उसे सज़ा देने का पूरा अधिकार है।

कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट एक्ट, 1971 की धारा 12 के अनुसार, कोर्ट सज़ा दे सकती है:

  • 6 महीने तक की जेल, ₹2,000 तक का जुर्माना (कई मामलों में कोर्ट इससे ज़्यादा जुर्माना भी लगा सकती है) या जेल और जुर्माना दोनों
  • लेकिन, अगर जिसने गलती की है वो सच्चे मन से और बिना शर्त माफ़ी मांग ले, तो कोर्ट सज़ा माफ़ भी कर सकती है। अगर माफ़ी झूठी या दिखावटी लगे, तो सज़ा दी जाएगी।

सज़ा देना ज़रूरी क्यों है? आप सोच सकते हैं, “इतनी सख़्ती क्यों?” इसका कारण ये है ताकि:

  • लोगों का कोर्ट पर भरोसा बना रहे
  • कानून का सम्मान बना रहे– अगर कोर्ट के आदेश न माने जाएं, तो कानून का कोई मतलब नहीं रह जाएगा
  • न्याय मिल सके- कोर्ट के आदेश अक्सर किसी का हक दिलाने या गलत को रोकने के लिए होते हैं

अगर सख़्त सज़ा न हो, तो लोग अपनी मर्ज़ी से कानून मानेंगे या नहीं मानेंगे। इससे व्यवस्था बिगड़ेगी और न्याय नहीं मिल पाएगा।

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प्रशांत भूषण कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट मामला (2020)

मामला क्या था?

2020 में, वकील प्रशांत भूषण ने दो ट्वीट किए, जिनमें उन्होंने न्यायपालिका और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की आलोचना की। इन ट्वीट्स के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान (Suo – Moto) लेकर कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट की कार्यवाही शुरू की।

ट्वीट्स में क्या था?

  • पहला ट्वीट: CJI शरद बोबड़े की बिना हेलमेट और मास्क के महंगी बाइक पर सवारी की तस्वीर साझा की, साथ ही न्यायालय को “लॉकडाउन मोड” में रखने का आरोप लगाया।
  • दूसरा ट्वीट: पिछले चार CJI पर छह सालों में “लोकतंत्र के विनाश” में शामिल होने का आरोप लगाया।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

सुप्रीम कोर्ट ने इन ट्वीट्स को “झूठा और दुर्भावनापूर्ण” मानते हुए कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट का दोषी ठहराया। कोर्ट ने कहा कि इन ट्वीट्स से न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा और जनता का विश्वास डगमगाया।

सजा:

कोर्ट ने प्रशांत भूषण पर ₹1 का प्रतीकात्मक जुर्माना लगाया। यदि उन्होंने यह जुर्माना 15 सितंबर 2020 तक नहीं भरा, तो उन्हें तीन महीने की सजा और तीन वर्षों के लिए वकालत से प्रतिबंधित किया जाता।

भूषण का जवाब:

भूषण ने माफी मांगने से इंकार किया, यह कहते हुए कि यह उनके “विवेक का अपमान” होगा। उन्होंने कहा कि उनके ट्वीट उनके विश्वास की अभिव्यक्ति थे और न्यायपालिका का सम्मान करने का उनका इरादा था।

महत्व:

इस मामले ने स्वतंत्र अभिव्यक्ति और न्यायपालिका की गरिमा के बीच संतुलन पर बहस छेड़ी। यह दर्शाता है कि न्यायपालिका की आलोचना करना कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट नहीं है, जब तक वह तथ्यात्मक और सम्मानजनक हो।

सहारा–SEBI मामला

सहारा समूह के प्रमुख, सुब्रत रॉय, को भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि वे निवेशकों को ₹24,000 करोड़ की राशि वापस करें। जब वे इस आदेश का पालन करने में विफल रहे, तो उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया। उन्होंने दो साल से अधिक समय जेल में बिताया और मई 2016 में पैरोल पर रिहा हुए।

चित्रा वुड्स मैनर्स वेलफेयर एसोसिएशन बनाम शाजी ऑगस्टीन (2025)

इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति कोर्ट को गुमराह करता है और ऐसे आदेश का पालन नहीं करता जिसकी मांग खुद उसने नहीं की थी, तो यह कोर्ट को धोखे में डालना माना जाएगा।

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सजा:

  • 3 महीने की साधारण जेल
  • ₹20,000 जुर्माना (सिविल कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट)

यह पहला मामला है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि सिर्फ कोर्ट का आदेश न मानना ही नहीं, बल्कि जानबूझकर उसे तोड़ना भी गंभीर अपराध है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट सिर्फ एक संस्था नहीं है, यह हमारे अधिकारों, आज़ादी और संविधान की रक्षा करता है। इसके आदेश को न मानना कोई निजी बात नहीं होती, बल्कि यह न्याय व्यवस्था पर सीधा हमला होता है।

कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट पर सज़ा देना ताकत दिखाने के लिए नहीं होता, बल्कि यह दिखाने के लिए होता है कि न्याय का सम्मान ज़रूरी है। चाहे आप आम नागरिक हों, व्यापारी हों या सरकारी अफसर, बात साफ है: सुप्रीम कोर्ट के आदेश मानना कोई पसंद की बात नहीं, ये कानून है।

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FAQs

1. क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने पर जेल हो सकती है?

हां, अगर कोर्ट की अवमानना साबित हो जाए तो 6 महीने की जेल हो सकती है।

2. सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को न मानने पर क्या जुर्माना लगाया जा सकता है?

हां, ₹2000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है या जेल भी दी जा सकती है।

3. सुप्रीम कोर्ट की अवमानना से बचने के उपाय क्या हैं?

  • कोर्ट के आदेश को समय पर पढ़ें और समझें
  • वकील से सलाह लें
  • पालन न कर पाने की स्थिति में कोर्ट को सूचित करें

4. क्या सरकारी अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना कर सकते हैं?

नहीं, और यदि वे ऐसा करते हैं तो उनके खिलाफ भी वही सजा लागू होती है।

5. अगर सुप्रीम कोर्ट का आदेश न मानने पर सजा मिल रही हो तो क्या अपील की जा सकती है?

सुप्रीम कोर्ट अंतिम न्यायालय है, लेकिन पुनर्विचार याचिका (Review Petition) दाखिल की जा सकती है।

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