भारत में आपसी तलाक लेने के लिए कौन सा कानून है?

What is the law for mutual divorce in India

भारत में विवाह सिर्फ एक सामाजिक या धार्मिक बंधन नहीं, बल्कि एक कानूनी अनुबंध भी है। जब पति-पत्नी के बीच मतभेद इतने गहरे हो जाते हैं कि साथ रहना असंभव हो जाए, तो अलग होने का रास्ता तलाक के रूप में खुला होता है। 

यदि दोनों सहमति से अलग होना चाहते हैं, तो वे आपसी तलाक (Mutual Consent Divorce) का विकल्प चुन सकते हैं। यह तलाक का एक सरल, सम्मानजनक और कम विवादास्पद तरीका है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि भारत में आपसी तलाक के लिए कौन-कौन से कानून मौजूद हैं, प्रक्रिया कैसी होती है, और किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

आपसी तलाक क्या होता है?

आपसी तलाक वह प्रक्रिया है जिसमें पति और पत्नी, दोनों की स्वेच्छा से, यह निर्णय लेते हैं कि वे अब साथ नहीं रह सकते और शांतिपूर्वक विवाह को समाप्त करना चाहते हैं। इसमें न तो एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप होता है और न ही लंबा मुकदमा चलता है।

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सामान्य और विवादित तलाक में अंतर:

विषयविवादित तलाकआपसी तलाक
प्रक्रियालंबी और जटिलसरल और तेज़
आधारदोष सिद्ध करनासहमति
समयअधिककम

भारत में आपसी तलाक से संबंधित प्रमुख कानून

भारत में धर्म के आधार पर अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों में आपसी तलाक की व्यवस्था दी गई है:

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955

  • धारा 13बी: आपसी सहमति से तलाक के लिए प्रावधान।

विशेष विवाह अधिनियम, 1954

  • धारा 28: अंतरधार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों के लिए आपसी तलाक की प्रक्रिया।

पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936

  • धारा 32बी: पारसी दंपतियों के बीच आपसी तलाक की अनुमति।

मुस्लिम पर्सनल लॉ

  • तलाक-ए-मुब़ारत (Talaq-e-Mubarat): आपसी सहमति से अलगाव की इस्लामी प्रक्रिया।
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भारतीय तलाक अधिनियम, 1869

  • ईसाई धर्मावलंबियों के बीच तलाक की प्रक्रिया (विशेष रूप से आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका)।

आपसी तलाक के लिए पात्रता (Eligibility)

  • दोनों पति-पत्नी की स्वतंत्र सहमति होनी चाहिए।
  • शादी को कम से कम एक वर्ष हो चुका हो।
  • दांपत्य जीवन में सुधार की कोई संभावना नहीं होनी चाहिए।
  • बच्चों, संपत्ति और भरण-पोषण के सभी मुद्दों पर स्पष्ट सहमति होनी चाहिए।

आपसी तलाक की प्रक्रिया – चरण दर चरण

Step 1: सहमति और समझौता तैयार करना

  • बच्चों की कस्टडी का निर्णय।
  • संपत्ति के बंटवारे और वित्तीय समझौते को तय करना।
  • भरण-पोषण (Alimony) का निपटारा करना।

Step 2: प्रथम मोशन याचिका दाखिल करना

  • फैमिली कोर्ट में एक संयुक्त याचिका दाखिल करें।
  • दोनों पक्षों को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होना होगा।

Step 3: कूलिंग-ऑफ पीरियड (Cooling-off Period)

  • प्रथम मोशन के बाद कोर्ट द्वारा 6 महीने का समय दिया जाता है ताकि दोनों सोच-समझ लें।

Step 4: द्वितीय मोशन और अंतिम सुनवाई

  • 6 महीने के बाद दोनों फिर से उपस्थित होकर सहमति दोहराते हैं।
  • कोर्ट तलाक की डिक्री (Divorce Decree) पारित करता है।

कूलिंग-ऑफ पीरियड में छूट (Waiver of Cooling-off Period)

अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर (2017) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13B(2) के तहत छह महीने का कूलिंग-ऑफ पीरियड अनिवार्य नहीं है, बल्कि यह मार्गदर्शक है। यदि दोनों पक्षों ने स्पष्ट रूप से अपने निर्णय में अडिगता दिखाई है, तो यह अवधि माफ की जा सकती है। इस निर्णय में कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि पक्षों के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है और सभी विवाद जैसे भरण-पोषण, बच्चों की कस्टडी आदि सुलझा लिए गए हैं, तो कूलिंग-ऑफ पीरियड को माफ किया जा सकता है। यह निर्णय विवाहों के त्वरित और निष्कलंक समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

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माफ करवाने के लिए जरूरी बातें:

  • विवाह पूरी तरह से टूट चुका हो।
  • दोनों के बीच कोई विवाद न बचा हो।
  • दोनों स्वतंत्र रूप से तलाक चाहते हों।

आपसी तलाक में जरूरी दस्तावेज

  • विवाह प्रमाण पत्र
  • पति और पत्नी के एड्रेस प्रूफ
  • पहचान पत्र (आधार, पैन आदि)
  • सहमति समझौता (Settlement Agreement)
  • बच्चों से संबंधित कागजात (यदि संतान है)

आपसी तलाक में खर्च और समय सीमा

  • किसी कानूनी मामले की प्रक्रिया को शुरू करने से पहले, यह महत्वपूर्ण है कि आप सारी जानकारी सही तरीके से एकत्र करें। इसमें अदालत का मामला, आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच का विवाद, और अन्य कानूनी पहलू शामिल होते हैं। सही पहलू पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी है।
  • हर कानूनी प्रक्रिया का एक विशिष्ट विवरण होता है, जिसमें मामलों की सुनवाई, दस्तावेज़ों की स्थिति, और कानूनी बिंदुओं का विश्लेषण किया जाता है। मामले के अनुसार विभिन्न अदालतों में सुनवाई होती है, और अलग-अलग दावों को अदालत में प्रस्तुत किया जाता है।
  • वकील की फीस स्थान और वकील के अनुभव पर निर्भर करती है। बड़े शहरों में वकील अधिक शुल्क लेते हैं, जबकि छोटे स्थानों में कम फीस हो सकती है। अनुभवी वकील की फीस अधिक हो सकती है, क्योंकि वह मामलों को जल्दी सुलझाते हैं।

मुस्लिम कानून में आपसी तलाक (Talaq-e-Mubarat)

  • दोनों पक्ष आपसी सहमति से तलाक पर सहमत होते हैं।
  • एक पक्ष प्रस्ताव करता है, दूसरा पक्ष स्वीकार करता है।
  • दस्तावेजी प्रमाण के साथ अलगाव मान्य होता है।
  • कई मामलों में अदालत से रजिस्ट्रेशन करवाना बेहतर होता है।

अन्य धर्मों के तहत आपसी तलाक

पारसी कानून:

  • पारसी दंपति फैमिली कोर्ट में संयुक्त याचिका दाखिल कर सकते हैं।
  • सामान्य प्रक्रिया हिंदू विवाह अधिनियम जैसी ही है।
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ईसाई कानून:

  • ईसाई जोड़े भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 के तहत आपसी सहमति से तलाक ले सकते हैं।

आपसी तलाक में सामान्य समस्याएं और समाधान

यदि सहमति टूट जाए तो:

  • आपसी तलाक आगे नहीं बढ़ सकता।
  • फिर विवादित तलाक (Contested Divorce) की प्रक्रिया अपनानी होगी।

भरण-पोषण और कस्टडी विवाद:

  • कोर्ट द्वारा उचित मध्यस्थता कराई जा सकती है।

निष्कर्ष

आपसी तलाक जीवन में एक नया अध्याय शुरू करने का एक शांति-पूर्ण तरीका हो सकता है। यदि सही तरीके से कानूनी सलाह ली जाए और पूरी प्रक्रिया को समझदारी से अपनाया जाए, तो यह कम तनावपूर्ण और जल्दी पूर्ण हो सकता है। याद रखें, एक अच्छा वकील, सही दस्तावेज, और स्पष्ट संवाद से आप इस कठिन समय को भी सम्मानपूर्वक पार कर सकते हैं।

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FAQs

1. क्या आपसी तलाक में दोनों का व्यक्तिगत उपस्थिति जरूरी है?

हाँ, दोनों पक्षों को कोर्ट में उपस्थित होना अनिवार्य है।

2. क्या आपसी तलाक के दौरान भरण-पोषण का निपटारा करना जरूरी है?

हाँ, अगर कोई पक्ष भरण-पोषण चाहता है तो समझौते में इसका उल्लेख करना जरूरी है।

3. कूलिंग-ऑफ पीरियड कब माफ किया जा सकता है?

जब दोनों पक्ष अडिग हों और कोई सुलह की संभावना न हो।

4. अगर तलाक के बीच में कोई पक्ष अपना मन बदल ले तो?

फिर आपसी तलाक संभव नहीं रहेगा और विवादित तलाक फाइल करना पड़ेगा।

5. मुस्लिम महिला आपसी तलाक के बाद मुआवजे का दावा कर सकती है क्या?

हाँ, ‘महर’ और ‘इद्दत’ की अवधि तक भरण-पोषण का दावा किया जा सकता है।

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