भारतीय समाज में दहेज एक जटिल सामाजिक और कानूनी विषय रहा है। दहेज उत्पीड़न के वास्तविक मामलों में जहां महिलाएं न्याय की हकदार हैं, वहीं कई बार इस कानून का दुरुपयोग कर निर्दोष पुरुषों और उनके परिवार को झूठे आरोपों में फंसा दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट भी बार-बार कह चुका है कि धारा 498A IPC/भारतीय न्याय संहिता (BNS 2023) कि धारा 85 का दुरुपयोग एक “लीथल वेपन” (घातक हथियार) की तरह किया जा रहा है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है – क्या झूठा दहेज केस करना खुद में एक अपराध है? और यदि हाँ, तो ऐसे मामलों में क्या कानूनी संरक्षण उपलब्ध है?
भारत में दहेज संबंधित प्रमुख कानून
भारत में दहेज से संबंधित अपराधों को नियंत्रित करने के लिए निम्न प्रमुख कानूनी प्रावधान लागू होते हैं:
भारतीय न्याय संहिता (BNS 2023) की धारा 85
- यह धारा किसी महिला को उसके पति या ससुराल वालों द्वारा दहेज के लिए उत्पीड़न (मानसिक या शारीरिक) के विरुद्ध सुरक्षा देती है।
- यह एक गंभीर, गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है।
- सजा: 3 वर्ष तक की कारावास और जुर्माना।
दहेज निषेध अधिनियम, 1961 (Dowry Prohibition Act)
- विवाह के दौरान या उसके पहले-पश्चात दहेज लेना, देना या मांगना गैरकानूनी है।
- सजा: न्यूनतम 5 वर्ष की जेल और ₹15,000 या दहेज मूल्य — जो अधिक हो — का जुर्माना।
क्या झूठा दहेज केस दायर करना स्वयं में अपराध है?
जी हाँ। यदि यह सिद्ध हो जाए कि पत्नी ने जानबूझकर झूठा केस दर्ज कराया है, तो यह एक दंडनीय अपराध माना जाता है। ऐसे में भारतीय दंड संहिता की निम्न धाराएं लागू हो सकती हैं:
भारतीय न्याय संहिता (BNS 2023) 217 – झूठी जानकारी देना
- सरकारी अधिकारी को गलत सूचना देकर कानूनी कार्रवाई शुरू करवाना।
- सजा: 6 माह की जेल या जुर्माना या दोनों।
भारतीय न्याय संहिता (BNS 2023) 248 – झूठा आरोप लगाना
- किसी निर्दोष व्यक्ति पर झूठा गंभीर अपराध आरोपित करना।
- सजा: 2 वर्ष (सामान्य अपराधों के लिए), 7 वर्ष (गंभीर अपराधों जैसे हत्या के लिए) तक की जेल।
भारतीय न्याय संहिता (BNS 2023) 356 – मानहानि (Defamation)
- झूठे आरोपों से किसी की सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाना।
- सजा: 2 वर्ष तक की जेल, जुर्माना या दोनों।
भारतीय न्याय संहिता (BNS 2023) 528 – झूठे केस को रद्द कराने की विशेष शक्तियाँ
हाई कोर्ट इस धारणा में हस्तक्षेप कर सकता है यदि यह स्पष्ट हो कि केस का उद्देश्य प्रताड़ना या प्रतिशोध है।
सुप्रीम कोर्ट के उल्लेखनीय फैसले
राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2017)
सुप्रीम कोर्ट ने 498A के बढ़ते दुरुपयोग को रोकने हेतु विस्तृत दिशा-निर्देश दिए:
- पुलिस बिना प्राथमिक जांच के गिरफ्तारी नहीं करेगी।
- पारिवारिक विवादों को पहले फैमिली वेलफेयर कमेटी के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
- वरिष्ठ नागरिकों और महिलाओं को फौरन गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
“धारा 498A का उद्देश्य महिलाओं को संरक्षण देना है, न कि निर्दोष पुरुषों को प्रताड़ित करना।” — सुप्रीम कोर्ट
प्रेमा साहू बनाम राज्य (2018)
पत्नी ने पति व परिवार पर झूठे आरोप लगाए, बाद में सबूतों के अभाव में केस खारिज हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने झूठे केस को “अदालती संसाधनों की बर्बादी” बताया।
झूठे केस से पीड़ित पुरुष क्या करें?
अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) लें:
भारतीय न्याय संहिता (BNS 2023) 482 के अंतर्गत गिरफ्तारी से पहले अग्रिम जमानत लेना जरूरी है।
सबूत इकट्ठा करें:
- कॉल रिकॉर्डिंग्स
- चैट लॉग्स
- गवाह
- वीडियो/सीसीटीवी फुटेज
BNS 248 और 217के अंतर्गत काउंटर केस दायर करें:
यदि साबित हो जाए कि आरोप झूठे हैं तो आरोपी महिला के खिलाफ आपराधिक मामला दायर करें।
मानहानि (Defamation) का मुकदमा दायर करें:
किसी के द्वारा सार्वजनिक रूप से झूठे आरोपों से आपकी छवि को नुकसान पहुँचे तो IPC 500 के तहत केस करें।
FIR रद्द कराने के लिए हाई कोर्ट जाएं (BNSS 528):
FIR निरस्त करने हेतु आपके पास यह अधिकार है यदि यह साफ हो कि आरोप मनगढ़ंत हैं।
कानूनी उपायों के साथ-साथ व्यवहारिक सुझाव
- पत्नी से बातचीत को रिकॉर्ड करें (जहां वैधानिक रूप से अनुमत हो)।
- शांत रहकर कानूनी प्रक्रिया अपनाएं, क्रोध में आकर प्रतिक्रिया न दें।
- मनोवैज्ञानिक समर्थन और परामर्श लें; मानसिक दबाव को हल्के में न लें।
- सोशल मीडिया पर केस से संबंधित कोई पोस्ट न करें।
निष्कर्ष – कानून का सम्मान करें, उसका दुरुपयोग नहीं
भारत का दहेज कानून एक महत्वपूर्ण सामाजिक सुरक्षा तंत्र है, लेकिन जब इसका दुरुपयोग होता है, तो यह निर्दोषों के लिए दंड बन जाता है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स समय-समय पर यह स्पष्ट कर चुके हैं कि “कानून का उद्देश्य सुरक्षा है, प्रतिशोध नहीं।” इसलिए यदि आप झूठे केस का शिकार हैं, तो घबराएं नहीं कानून आपके साथ है। सबूत, प्रक्रिया और न्याय की शक्ति का सहारा लें।
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FAQs
1. क्या पत्नी को झूठा केस दायर करने पर जेल हो सकती है?
हाँ, BNS 217 और 248 के तहत कोर्ट द्वारा दोषी पाए जाने पर महिला को सजा हो सकती है।
2. क्या सिर्फ आरोप लगने पर पुलिस गिरफ्तारी कर सकती है?
85 में गिरफ्तारी के लिए अब प्राथमिक जांच अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए हैं।
3. क्या सारे परिवार के लोग फंस सकते हैं?
केवल उन्हीं पर कार्यवाही होगी जिनके खिलाफ प्रथम दृष्टया सबूत होंगे। सबको अंधाधुंध फंसाना गलत है।
4. क्या पति पत्नी के खिलाफ मानहानि का केस कर सकता है?
बिलकुल। यदि पत्नी के झूठे आरोपों से आपकी प्रतिष्ठा को नुकसान हुआ है, तो आप BNS 356 के तहत मुकदमा कर सकते हैं।
5. FIR को कैसे रद्द कराएं?
BNSS 528 के तहत हाई कोर्ट में याचिका दायर की जाती है। यदि कोर्ट को लगे कि मामला दुर्भावनापूर्ण है, तो वह FIR को रद्द कर सकता है।
6. क्या कोर्ट तलाक की अनुमति दे सकता है?
अगर साबित हो जाए कि पत्नी ने झूठे आरोप लगाकर मानसिक प्रताड़ना दी है, तो यह “क्रूरता” की श्रेणी में आता है और पति को तलाक का अधिकार मिल सकता है।



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