क्या बीमारी की वजह से नौकरी गंवाना जायज है? बिल्कुल नहीं। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि अगर आप बीमार पड़ जाएं और कंपनी आपको मेडिकल छुट्टी के बाद नौकरी से ही निकाल दे, तो आप क्या करेंगे?
हाल के वर्षों में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं जहां कर्मचारी लंबे समय तक बीमार होने पर, या वैध मेडिकल सर्टिफिकेट के बावजूद, नौकरी से निकाल दिए जाते हैं। यह न सिर्फ अनैतिक है बल्कि कई बार कानून के खिलाफ भी होता है।
यह ब्लॉग इसी मुद्दे पर केंद्रित है – अगर आपको मेडिकल छुट्टी के बाद नौकरी से निकाल दिया गया है, तो आपके पास क्या कानूनी अधिकार हैं और आप क्या कदम उठा सकते हैं।
भारत में मेडिकल लीव क्या होती है?
मेडिकल लीव का मतलब होता है ऐसी छुट्टी जो कोई कर्मचारी बीमारी, चोट या किसी स्वास्थ्य संबंधी परेशानी की वजह से लेता है। यह छुट्टी काम से आराम लेने और इलाज कराने के लिए होती है, ताकि कर्मचारी पूरी तरह से ठीक होकर वापस काम पर लौट सके।
भारत में मेडिकल लीव से जुड़े नियम इस बात पर निर्भर करते हैं कि आप किस सेक्टर में काम कर रहे हैं — जैसे फैक्ट्री, प्राइवेट ऑफिस, दुकान या सरकारी विभाग। इसके अलावा, आपकी नौकरी का टाइप और कंपनी की पॉलिसी भी मायने रखती है।
फैक्ट्रीज एक्ट, 1948: अगर आप किसी फैक्ट्री में काम करते हैं, तो इस कानून के तहत आपको हर साल कम से कम 12 दिन की सवैतनिक (paid) मेडिकल लीव का हक होता है।
शॉप्स एंड इस्टैब्लिशमेंट एक्ट: यह कानून अलग-अलग राज्यों के हिसाब से होता है, और यह उन कर्मचारियों पर लागू होता है जो दुकानों, ऑफिसों या किसी प्राइवेट फर्म में काम करते हैं। हर राज्य का नियम थोड़ा अलग होता है, लेकिन आमतौर पर कर्मचारियों को सालाना कुछ दिन की मेडिकल या सिकलिव (sick leave) दी जाती है।
एम्प्लाइज स्टेट इन्शुरन्स (ESI) एक्ट: अगर आपकी कंपनी ESI के तहत आती है और आपकी सैलरी 21,000 रुपये प्रति माह से कम है, तो आप ESI योजना के तहत इलाज और मेडिकल लीव के दौरान आर्थिक सहायता पाने के हकदार होते हैं। इसमें आपको बीमार होने पर मेडिकल बेनिफिट और कैश बेनिफिट दोनों मिलते हैं।
कंपनी की पॉलिसी और एंप्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट: हर कंपनी की अपनी छुट्टियों की पॉलिसी होती है जो आपके एंप्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट में लिखी होती है। कुछ कंपनियां सवैतनिक मेडिकल लीव देती हैं, जबकि कुछ में छुट्टी लेने पर वेतन कट सकता है।
क्या मेडिकल लीव के बाद कंपनी आपको नौकरी से निकाल सकती है?
साफ-साफ जवाब है – नहीं। अगर आपने मेडिकल लीव ली है, तो सिर्फ इसी वजह से आपको नौकरी से निकालना कानून के खिलाफ है। भारत में कुछ कानून हैं जो कर्मचारियों को इस तरह की गलत टर्मिनेशन (नौकरी से निकालने) से बचाते हैं:
कौन-कौन से कानून आपकी मदद करते हैं?
- इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट, 1947: अगर आप “वर्कमेन” की कैटेगरी में आते हैं (जैसे फैक्ट्री वर्कर, टेक्नीशियन आदि), तो यह कानून बिना वजह या बिना प्रक्रिया के आपको निकालने से रोकता है।
- शॉप्स एंड इस्टैब्लिशमेंट एक्ट: अगर आप ऑफिस, दुकान या प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं, तो यह कानून आपको गलत तरीके से नौकरी से निकाले जाने से बचाता है।
- एम्प्लाइज स्टेट इन्शुरन्स (ESI) एक्ट: अगर आप ESI स्कीम के तहत आते हैं, तो आपको इलाज और मेडिकल बेनिफिट के साथ-साथ बीमारी के चलते टर्मिनेशन से भी अप्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा मिलती है।
- फैक्ट्रीज एक्ट, 1948: यह फैक्ट्री वर्कर्स के स्वास्थ्य और भलाई की रक्षा करता है।
- पेमेंट ऑफ़ ग्राचित्य अस्य, 1972: यह एक्ट नौकरी छोड़ने पर ग्रेच्युटी (आर्थिक लाभ) देने की बात करता है, लेकिन इसके तहत भी बिना सही वजह के निकालना ठीक नहीं है।
- एम्प्लाइज कॉन्ट्रैक्ट: अगर आपने किसी तय समय की नौकरी पर साइन किया है, तो आपको निकालना उसी कॉन्ट्रैक्ट और कानून के अनुसार होना चाहिए।
कब मेडिकल लीव के बाद आपको निकालना गैरकानूनी होता है?
- अगर आपने मेडिकल लीव ली थी और उसी दौरान या तुरंत बाद बिना सही वजह के आपको निकाल दिया गया।
- अगर आपकी बीमारी या शारीरिक समस्या के कारण आपको निकाला गया (ये डिस्क्रिमिनेशन माना जाता है) ।
- अगर आपको निकालते वक्त कंपनी ने कोई कारण नहीं बताया, ना ही कोई नोटिस दिया, और ना ही कोई सुनवाई की।
- अगर आपकी नौकरी का टर्मिनेशन आपके कॉन्ट्रैक्ट या राज्य के लेबर लॉ के खिलाफ किया गया हो।
कब मेडिकल लीव के बाद निकालना कानूनी हो सकता है?
- अगर कंपनी ईमानदारी से अपना काम बंद कर रही हो।
- अगर आपने कंपनी के नियमों का उल्लंघन किया हो (जो मेडिकल लीव से जुड़ा न हो) ।
- अगर आपने सारी छुट्टियां खत्म कर दी हों और लंबे समय तक वापस काम पर नहीं आ पा रहे हों।
- अगर कंपनी ने सही तरीके से बताया हो कि आपकी पोस्ट अब ज़रूरत में नहीं है और नियमों के अनुसार ही प्रोसेस किया हो।
मेडिकल लीव के बाद अगर आपको नौकरी से निकाल दिया गया है, तो आप क्या करें?
स्टेप 1: सभी ज़रूरी दस्तावेज़ इकट्ठा करें
- डॉक्टर की पर्ची और अस्पताल की रिपोर्ट
- मेडिकल लीव की एप्लीकेशन और उसकी मंजूरी (ईमेल या लेटर)
- नौकरी से निकाले जाने का लेटर या नोटिस
- आपकी जॉब का कॉन्ट्रैक्ट और कंपनी की लीव पॉलिसी
- HR या मैनेजर से हुई बातचीत के रिकॉर्ड (ईमेल, मैसेज आदि)
स्टेप 2: लिखित में कारण मांगें
कंपनी से लिखित में पूछें कि आपको क्यों निकाला गया। ईमेल या लेटर के ज़रिए साफ तौर पर कारण बताने को कहें।
स्टेप 3: अपनी जॉब की स्थिति जांचें
- क्या आप “वर्कमेन” की कैटेगरी में आते हैं?
- क्या आप ESI स्कीम के तहत कवर हैं?
- क्या आपने अपनी छुट्टियों की लिमिट पूरी कर ली थी?
- अपना एंप्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट और कंपनी की छुट्टी नीति ध्यान से पढ़ें।
स्टेप 4: कंपनी के अंदर शिकायत दर्ज करें
अगर आपकी कंपनी में HR या इंटरनल कंप्लेंट कमिटी है, तो वहां पर लिखित में शिकायत दर्ज करें कि आपको गलत तरीके से निकाला गया है।
स्टेप 5: कानूनी सलाह लें और लीगल नोटिस भेजें
- एक लेबर कानून विशेषज्ञ वकील से बात करें जो आपको सही सलाह दे सके।
- कानूनी कदम उठाने से पहले, वकील के जरिए कंपनी को लीगल नोटिस भेजें। इसमें बताया जाए कि आपको किस आधार पर निकालना गलत है और आप आगे क्या कार्रवाई करने जा रहे हैं।
- अगर कंपनी से समाधान नहीं निकलता, तो आप लेबर कमिश्नर के पास शिकायत कर सकते हैं या फिर लेबर कोर्ट में केस दायर कर सकते हैं।
स्टेप 6: शिकायत कहां करें?
आप नीचे दिए गए विभागों में शिकायत कर सकते हैं:
- लेबर कमिश्नर (राज्य स्तर पर)
- इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल या लेबर कोर्ट
- ESI कॉर्पोरेशन, अगर मेडिकल लाभ से जुड़ा मामला हो
- नेशनल या स्टेट ह्यूमन राइट्स कमीशन, अगर बीमारी या डिसेबिलिटी के कारण भेदभाव हुआ हो
कर्मचारी का मुआवज़ा पाने का अधिकार
- बैकवेज (Back Wages): अगर केस जीते, तो आपको निकाले जाने की तारीख से लेकर अब तक का पूरा बकाया वेतन मिल सकता है।
- पुनःस्थापना (Reinstatement): कोर्ट आपके पक्ष में फैसला दे तो कंपनी को आपको फिर से उसी नौकरी या पद पर वापस रखना होगा।
- मानसिक क्षति का मुआवज़ा: गलत तरीके से निकाले जाने से हुए मानसिक दुख, तनाव या बदनामी के लिए कोर्ट आपको मुआवज़ा देने का आदेश दे सकता है।
क्या मेडिकल लीव के दौरान निकाले जाना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है?
भारत का संविधान हर नागरिक को जीवन और सम्मान का अधिकार देता है:
- अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
- अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता का अधिकार
अगर कोई कंपनी बीमारी के कारण नौकरी से निकालती है, तो यह इन अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
2025 में बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर बेंच) ने एक अहम फैसला दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई कर्मचारी बिना बताए या बिना मंजूरी के लंबे समय तक काम से गायब रहता है, तो इसे नौकरी छोड़ देना माना जा सकता है, इसे गलत तरीके से निकाला जाना नहीं कहा जाएगा।
इसका मतलब क्या है? और ये क्यों ज़रूरी है?
- अगर कोई मेडिकल लीव पर है और कंपनी से मंजूरी ली है, तो उसे बिना वजह नौकरी से नहीं निकाला जा सकता। ऐसे मामलों में कानून कर्मचारी की रक्षा करता है।
- लेकिन अगर कोई बिना बताए या बिना छुट्टी स्वीकृत कराए लंबे समय तक गायब रहता है, तो कंपनी मान सकती है कि कर्मचारी ने खुद ही नौकरी छोड़ दी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: नौकरी से निकाले जाने से पहले सही प्रक्रिया ज़रूरी है
सितंबर 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया (टी.पी. मुरली बनाम केरल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी केस)। कोर्ट ने कहा कि किसी कर्मचारी को सिर्फ इसलिए नौकरी से नहीं निकाला जा सकता कि वो लंबे समय तक छुट्टी पर था।
इस केस में कर्मचारी 20 साल से बिना वेतन की छुट्टी पर था, फिर भी कोर्ट ने उसे निकालने का फैसला रद्द कर दिया क्योंकि:
- विभाग ने पहले से कोई ठोस कारण रिकॉर्ड नहीं किया
- कर्मचारी को अपनी बात कहने का मौका (सुनवाई) नहीं दिया गया
- पूरी जांच प्रक्रिया नहीं की गई
सुप्रीम कोर्ट: गलत निकाले जाने पर भी वापसी (Reinstatement) और पूरी सैलरी मिलना जरूरी नहीं
इलाहाबाद बैंक बनाम कृष्ण पाल सिंह (2021): इस केस में कर्मचारी पर रिकॉर्ड जलाने का शक था, लेकिन उसके खिलाफ कोई पक्के सबूत नहीं थे। इसी आधार पर उसे नौकरी से हटा दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि निकालना गलत था, लेकिन फिर भी कर्मचारी को नौकरी में वापस नहीं लिया गया और ना ही बैक वेज (बकाया सैलरी) दी गई। क्यों?
- कर्मचारी पहले ही रिटायरमेंट की उम्र तक पहुंच चुका था
- उसने कुल मिलाकर सिर्फ 6 साल की सेवा दी थी
इसलिए कोर्ट ने कहा कि उसे नौकरी पर वापस लेने की बजाय बैंक को ₹15 लाख मुआवज़ा देना होगा।
निष्कर्ष
मेडिकल लीव के बाद नौकरी से निकाला जाना दुखद हो सकता है, लेकिन भारतीय श्रम कानून आपको सुरक्षा देते हैं। अगर आपको लगता है कि निकाला जाना गलत या गैरकानूनी था, तो आप दस्तावेज़ इकट्ठा करें, कानूनी सलाह लें और अपने अधिकारों के लिए कदम उठाएं। सही जानकारी और समर्थन से आप गलत टर्मिनेशन के खिलाफ मजबूती से लड़ सकते हैं।
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FAQs
1. क्या मेडिकल छुट्टी के बाद नौकरी से निकाला जाना गैरकानूनी है?
यदि आपने वैध मेडिकल सर्टिफिकेट दिए हैं और छुट्टी स्वीकृत थी, तो ऐसी टर्मिनेशन गैरकानूनी मानी जाती है। कोर्ट इसे गलत टर्मिनेशन मान सकता है।
2. मेडिकल सर्टिफिकेट होने पर भी क्या कंपनी निकाल सकती है?
नहीं। कंपनी को पहले पूरी जांच और उचित प्रक्रिया अपनानी होगी, तभी किसी को नौकरी से हटाया जा सकता है।
3. गलत टर्मिनेशन पर कितने दिन में शिकायत करनी चाहिए?
आपको 90 दिनों के अंदर स्टेट लेबर कमिश्नर के पास लिखित शिकायत दर्ज करनी चाहिए, अन्यथा दावा न स्वीकार भी किया जा सकता है।
4. क्या मैं नौकरी वापस पा सकता हूँ?
हाँ। कोर्ट के सही आदेश मिलने पर आप पुनःस्थापित हो सकते हैं और नौकरी फिर पा सकते हैं, अगर पाया जाए कि टर्मिनेशन गलत था।
5. क्या मुआवज़ा भी मिल सकता है?
हां, कोर्ट आपको बैक वेज, मानसिक कष्ट का मुआवज़ा या लंप‑सम मुआवज़ा दे सकता है, जो मामले की गंभीरता, सेवा अवधि और उम्र पर निर्भर करता है ।



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