जब कोई व्यक्ति सेक्शुअल असॉल्ट का शिकार होता है, तो ज़िंदगी अचानक असुरक्षित और भारी लगने लगती है। ऐसे समय में कानून सिर्फ़ एक प्रक्रिया नहीं होता बल्कि यह आपके सम्मान, सुरक्षा और सच की रक्षा करने वाली ढाल बन जाता है। कई पीड़ित सामने आने से डरते हैं क्योंकि उन्हें समाज के सवालों, अधिकारों की जानकारी न होने या कोर्ट प्रक्रिया की चिंता होती है। लेकिन भारत का कानून इस तरह बनाया गया है कि कोई भी पीड़ित अकेला न रहे।
आज पुलिस, अस्पताल, कोर्ट और स्पेशल टीम सब मिलकर पीड़ित की मदद करते हैं। शुरुआत से लेकर केस खत्म होने तक गोपनीयता, सुरक्षा और सम्मान को सबसे ज़्यादा महत्व दिया जाता है। इन नियमों को समझने से पीड़ित को हिम्मत मिलती है और परिवार को पता चलता है कि कानून उनकी मदद के लिए है।
यह ब्लॉग बताता है कि कानून पीड़ित की कैसे रक्षा करता है और केस की प्रक्रिया कैसे चलती है, क्योंकि सही जानकारी ही न्याय की पहली सीढ़ी है।
भारत में यौन अपराध से जुड़े कानून
भारत में यौन अपराध को बहुत गंभीर अपराध माना जाता है। किसी भी तरह की यौन हिंसा चाहे शारीरिक, मौखिक, ऑनलाइन हो या धमकी देकर कानून इसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करता। निर्भया केस के बाद कानून और भी सख्त बनाए गए ताकि आरोपियों को कड़ी सज़ा मिले और पीड़ित की सुरक्षा हो सके।
भारत में पीड़ितों की सुरक्षा के लिए कुछ महत्वपूर्ण कानून लागू हैं:
भारतीय न्याय संहिता 2023 (BNS)
ये धाराएं पीड़िता की सुरक्षा के लिए है:
- धारा 63 – बलात्कार
- धारा 64, 65 और 66 – नाबालिगों के मामलों में बहुत सख्त सज़ा
- धारा 67 और 68 – गलत तरीके से फोटो/वीडियो लेना, प्रसारित करना धारा और पीछा करना
- धारा 74 – किसी महिला की गरिमा/मर्यादा को ठेस पहुँचाना
- धारा 75 – यौन उत्पीड़न
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता
इसमें जांच और कोर्ट की प्रक्रिया के दौरान पीड़ित को मिलने वाले अधिकार और सुरक्षा शामिल हैं, जैसे महिला अधिकारी द्वारा बयान, गोपनीयता, मेडिकल जांच की सुरक्षा आदि।
पोक्सो एक्ट (बच्चों के मामलों के लिए)
- बच्चों को यौन अपराध से बचाने के लिए बनाया गया
- चाइल्ड फ्रेंडली कोर्ट
- जल्दी सुनवाई
- कड़ी सज़ाएँ
यौन शोषण में पीड़िता के संवैधानिक और कानूनी अधिकार
भारत का संविधान और दंड कानून पीड़िता को कई सुरक्षा प्रदान करता है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत सुरक्षा का अधिकार) पीड़िता को सुरक्षित, सम्मानजनक और बिना डर के न्याय मिलना मौलिक अधिकार है।
- पहचान की गोपनीयता किसी भी पीड़िता का नाम, फोटो, पता – अखबार, टीवी, सोशल मीडिया आदि में छापा नहीं जा सकता। निपुण सक्सेना बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया 2018 SC 826 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस नियम को सख्ती से लागू किया है।
पीड़िता की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है?
पुलिस जांच और पीड़ित की सुरक्षा
जांच के दौरान पुलिस की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी होती है कि पीड़ित सुरक्षित, सम्मानित और सुरक्षित महसूस करे।
- अगर पीड़ित को धमकी, डर या किसी तरह का खतरा हो, तो पुलिस सुरक्षा दे सकती है, आरोपी को बेल की शर्तों के जरिए रोक सकती है और कोर्ट से रिस्ट्रेनिंग ऑर्डर (दूर रहने का आदेश) ले सकती है।
- पीड़ित के घर या अस्पताल में बयान अगर पीड़ित बच्चा है, दिव्यांग है, या बहुत ट्रॉमा में है, तो पुलिस घर या अस्पताल जाकर ही बयान ले सकती है।
- पीड़ित से गलत या हफ़्तारभरे सवाल नहीं पूछे जा सकते जैसे, चरित्र पर सवाल, पुराने रिश्तों पर सवाल।
- समय पर चार्जशीट पुलिस को समय पर चार्जशीट दाखिल करनी होती है POCSO मामलों में 90 दिनों के अंदर।
- Zero FIR में किसी भी पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की जा सकती है, चाहे घटना किसी और स्थान पर हुई हो।
कोर्ट प्रक्रिया – पीड़ित की सुरक्षा
- यौन अपराध मामलों में कोर्ट खास “विक्टिम – फ्रेंडली प्रक्रिया” अपनाती है, ताकि पीड़ित को सम्मान और सुरक्षा मिले।
- बंद अदालत (In-Camera Trial): कोर्टरूम में आम लोग नहीं आते। सिर्फ़, जज, वकील, पीड़ित, आरोपी, ज़रूरी स्टाफ को मौजूद रहने की अनुमति है। यह पीड़ित की निजता को बचाता है।
- पीड़ित की पहचान गोपनीय: कोई भी नाम नहीं लिखा या बोला जाता। कोर्ट “Victim A”, “Prosecutrix”, या “Child X” जैसे नाम इस्तेमाल करती है।
- आरोपी सीधे सवाल नहीं पूछ सकता: आरोपी पीड़ित से सीधे सवाल नहीं करेगा। उसका वकील ही सवाल पूछेगा। यह नियम पीड़ित को सुरक्षित महसूस करवाता है।
- वीडियो पर बयान की सुविधा: अगर पीड़ित आरोपी का सामना नहीं करना चाहता/चाहती, तो कोर्ट वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बयान, स्क्रीन लगाकर बयान या अलग वेटिंग रूम की अनुमति देती है।
- स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर: गंभीर मामलों में सरकार एक खास प्रशिक्षित वकील नियुक्त करती है, जो सिर्फ़ यौन अपराध मामलों में विशेषज्ञ होता है।
- फास्ट-ट्रैक अदालतें: कई जिलों में ऐसे मामलों के लिए तेज़ सुनवाई वाली अदालतें होती हैं, ताकि लंबी देरी न हो।
मेडिकल सुरक्षा
- पीड़िता की मेडिकल जांच में महिला डॉक्टर और नर्स शामिल होते हैं ताकि जांच के दौरान आराम और सुरक्षा महसूस हो।
- जांच के दौरान फॉरेंसिक एविडेंस जैसे DNA, कपड़े और अन्य सैंपल सुरक्षित तरीक से संग्रहित किए जाते हैं ताकि अदालत में प्रमाण के रूप में उपयोग हो सके।
- किसी भी प्रकार की मेडिकल जांच पीड़िता की अनुमति के बिना नहीं की जाती, उसकी सहमति अनिवार्य है।
पूरे मामले के दौरान पीड़ितों के कानूनी अधिकार
- मुफ़्त कानूनी सहायता का अधिकार: अगर पीड़िता वकील हायर नहीं कर सकती या कर भी सकती है, तब भी जिला लीगल सर्विसेस अथॉरिटी से मुफ्त कानूनी मदद मिल सकती है।
- धमकी से सुरक्षा का अधिकार: कोर्ट में आरोपी द्वारा धमकी या डराने-धमकाने की स्थिति गंभीरता से ली जाती है। आरोपी की बेल रद्द या कड़ी शर्तों पर लग सकती है।
- जानकारी रखने का अधिकार: पीड़िता को हर कदम की जानकारी मिलनी चाहिए, जैसे: आरोपी की गिरफ्तारी, बेल सुनवाई, कोर्ट की तारीख, जेल से रिहाई।
- दुभाषिया या विशेष शिक्षक का अधिकार: अगर पीड़िता सुन और देख नहीं पाती, मानसिक रूप से कमजोर या स्थानीय भाषा में सहज नहीं है, तो दुभाषिया या विशेष शिक्षक मदद कर सकते हैं।
- मुआवजे का अधिकार: राज्य पीड़िता को मुआवजा देती है, जिसमें शामिल हैं, मेडिकल ट्रीटमेंट, पुनर्वास, काउंसलिंग, खोया हुआ वेतन और शिक्षा की जरूरतें (विशेषकर नाबालिगों के लिए) । मुआवजा तब भी मिलता है जब आरोपी पकड़ा न जाए।
सुप्रीम कोर्ट के महत्वपुर्ण निर्णय
1. पंजाब राज्य बनाम गुरमीत सिंह (1996)
- मामला: आरोपी पर रेप का आरोप था। मुख्य सबूत पीड़िता का बयान था, और अन्य सबूत जैसे मेडिकल रिपोर्ट या गवाह कम थे।
- सवाल: क्या केवल पीड़िता का बयान ही आरोपी को सजा दिलाने के लिए पर्याप्त है, या अन्य सबूत भी चाहिए?
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर पीड़िता का बयान भरोसेमंद और सही है, तो यह अकेले ही आरोपी को सजा देने के लिए काफी है। अन्य सबूत जरूरी नहीं हैं।
- असर: यह फैसला पीड़ितों के लिए बहुत अहम है। अब कोर्ट सिर्फ़ भरोसेमंद बयान देखती है और मामले को बिना अतिरिक्त सबूतों के खारिज नहीं कर सकती।
2. साक्षी बनाम भारत संघ (2004)
- मामला: बच्चों और कमजोर पीड़ितों के साथ कोर्ट में दुविधा और मानसिक दबाव के मुद्दे थे। कई बार पीड़ित को सीधे आरोपी का सामना करना पड़ता था।
- सवाल: कोर्ट में पीड़ित की सुरक्षा, सम्मान और मानसिक स्थिति कैसे सुरक्षित रखी जाए?
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए कि:
- कोर्ट में स्क्रीन लगाकर पीड़ित को आरोपी दिखाई न दे
- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बयान लिया जाए
- बच्चों और कमजोर गवाहों के लिए विशेष व्यवस्था हो
- असर: इस फैसले से पीड़ितों को कोर्ट में सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल मिला। खासकर बच्चों और कमजोर पीड़ितों के लिए यह बहुत मददगार साबित हुआ।
निष्कर्ष
यौन अपराध का मामला सिर्फ़ कानूनी मसला नहीं है, यह पीड़ित के लिए भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक सफ़र भी है। कानून का मकसद केवल अपराधी को सजा देना नहीं, बल्कि पीड़ित की सुरक्षा, सहारा और शक्ति प्रदान करना भी है।
भारत का कानूनी सिस्टम इस तरह विकसित हुआ है कि पीड़ित चुप, शर्मिंदा या डर के कारण पीछे न हटें। मजबूत कानून, समर्पित सहायता प्रणाली, विक्टिम – फ्रेंडली अदालतें और कड़ी गोपनीयता सुरक्षा मिलकर पीड़ित की गरिमा और आत्मविश्वास लौटाने में मदद करती हैं।
अगर आप या आपका कोई जानने वाला यौन हिंसा का शिकार हुआ है, तो याद रखें: आप अकेले नहीं हैं। आपके पास अधिकार हैं, आपकी सुरक्षा है और न्याय पाने की ताकत भी आपके पास है। कानून हमेशा आपके साथ खड़ा है – हर कदम पर।
किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।
FAQs
1. यौन अपराध के पीड़ित के कानूनी अधिकार क्या हैं?
BNS, BNSS और POCSO (बच्चों के लिए) के तहत पीड़ित की सुरक्षा होती है। उन्हें गोपनीयता, मुफ्त मेडिकल सहायता, मुफ्त कानूनी मदद और आरोपी से सुरक्षा का अधिकार मिलता है।
2. क्या पीड़ित किसी भी पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज करवा सकता/सकती है?
Zero FIR नियम के तहत, आप किसी भी पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। पुलिस तुरंत FIR दर्ज करेगी।
3. अदालत कैसे पीड़ित की सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करती है?
कोर्ट में इन-कैमरा ट्रायल, वीडियो गवाही, सहायक व्यक्ति, विशेष वकील और बच्चों के लिए अनुकूल प्रक्रिया इस्तेमाल की जाती है।
4. POCSO एक्ट के तहत नाबालिग पीड़ितों के अधिकार क्या हैं?
तेज़ ट्रायल, बच्चों के लिए अनुकूल कोर्ट, सहायक व्यक्ति, गोपनीय सुनवाई और अपराधियों को कड़ी सजा।
5. क्या पीड़ित को सरकार से मुआवज़ा मिल सकता है?
हाँ। मेडिकल इलाज, काउंसलिंग, पुनर्वास, खोई हुई आय और शिक्षा का मुआवज़ा दिया जा सकता है, चाहे आरोपी अभी सजा पाए या नहीं।



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