आम आदमी द्वारा मजिस्ट्रेट को शिकायत करने की कानूनी प्रक्रिया

Legal procedure for a common man to file a complaint to a magistrate

कई बार ऐसा होता है जब कोई व्यक्ति पुलिस स्टेशन में शिकायत करता है लेकिन उचित कार्रवाई नहीं होती। ऐसे में न्याय पाने के लिए भारतीय कानून आम आदमी को मजिस्ट्रेट के सामने सीधे शिकायत करने का अधिकार देता है। खासकर गंभीर अपराधों, पुलिस की निष्क्रियता, या पक्षपात की आशंका जैसी परिस्थितियों में मजिस्ट्रेट के पास जाना एक प्रभावी और वैध विकल्प है।

भारतीय कानून में आम नागरिक को मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत करने का अधिकार

भारतीय संविधान और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के तहत हर नागरिक को न्याय पाने का मौलिक अधिकार प्राप्त है। BNSS की धारा 175(3) और 223 नागरिकों को यह अधिकार देती है कि यदि पुलिस कार्रवाई नहीं करती तो वे सीधे मजिस्ट्रेट के पास जाकर न्याय की मांग कर सकते हैं।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 175(3) के तहत शिकायत कैसे करें?

  • धारा 173 के तहत FIR दर्ज न होने पर: यदि पुलिस आपकी शिकायत पर FIR दर्ज करने से इनकार कर दे तो आप मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 175(3) के तहत आवेदन कर सकते हैं।
  • मजिस्ट्रेट की भूमिका: मजिस्ट्रेट पुलिस को जांच के आदेश दे सकता है और FIR दर्ज कराई जा सकती है।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

आवेदन में शामिल बातें:

  • शिकायतकर्ता का नाम, पता और पहचान विवरण
  • घटना की तिथि, समय, स्थान और पूरी जानकारी
  • अपराध की प्रकृति और आरोपियों का विवरण
  • सबूत और गवाहों का उल्लेख

जरूरी दस्तावेज:

  • पुलिस को की गई शिकायत की कॉपी
  • पुलिस की निष्क्रियता का प्रमाण (यदि उपलब्ध हो)
  • सबूत (फोटो, वीडियो, डॉक्युमेंट्स)
  • शपथपत्र (Affidavit) — Priyanka Srivastava केस के अनुसार अनिवार्य है
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BNSS की धारा 223 के तहत निजी शिकायत कैसे करें?

यदि आप चाहते हैं कि मजिस्ट्रेट स्वयं संज्ञान लें और पुलिस जांच के बजाय सीधे कार्यवाही शुरू करें तो आप BNSS की धारा 223 के तहत शिकायत दर्ज कर सकते हैं।

प्रक्रिया:

  • मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत प्रस्तुत करना
  • प्रारंभिक जिरह (Preliminary Examination) — शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान दर्ज करना
  • यदि मजिस्ट्रेट को प्रथम दृष्टया मामला सही लगे तो आरोपी को समन (Summons) जारी करना

मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दाखिल करने की विस्तृत प्रक्रिया

  • शिकायत तैयार करना: स्पष्ट, सुसंगत और तथ्यात्मक शिकायत लिखें।
  • संलग्नक जोड़ना: सबूत, पुलिस शिकायत की प्रति, अन्य समर्थन दस्तावेज जोड़ें।
  • स्टाम्प शुल्क और कोर्ट फीस: उचित शुल्क जमा करें।
  • फाइलिंग: संबंधित मजिस्ट्रेट के न्यायालय में फाइल करें
  • डायरी नंबर: शिकायत दाखिल होने पर एक डायरी नंबर मिलता है।

मजिस्ट्रेट द्वारा शिकायत पर क्या कार्यवाही की जाती है?

  • प्रारंभिक जांच: मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता और उसके गवाहों का बयान दर्ज करते हैं।
  • पुलिस जांच का आदेश: यदि मजिस्ट्रेट को लगे कि जांच आवश्यक है तो धारा 175(3) के तहत पुलिस को निर्देशित कर सकते हैं।
  • संज्ञान लेना: यदि शिकायत प्रथम दृष्टया सही हो तो मजिस्ट्रेट आरोपी को समन जारी कर सकते हैं।

क्या होता है यदि मजिस्ट्रेट शिकायत स्वीकार कर लेता है?

  • आरोपी के खिलाफ समन/वॉरंट जारी किया जाता है।
  • पुलिस या कोर्ट द्वारा आगे की जांच या कार्यवाही होती है।
  • सुनवाई के बाद ट्रायल प्रक्रिया शुरू होती है।

मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत करते समय ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बातें

  • साक्ष्य मजबूत रखें: बिना सबूत के शिकायत कमजोर हो सकती है।
  • शिकायत की भाषा साफ और तथ्यात्मक रखें: अतिशयोक्ति या झूठे तथ्य शिकायत को कमजोर कर सकते हैं।
  • झूठी शिकायत से बचें: भारतीय न्याय संहिता की धारा 248 के तहत झूठी शिकायत पर दंड का प्रावधान है।
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शिकायत न मानने की स्थिति में क्या करें?

  • रिजेक्शन के आधार: शिकायत में पर्याप्त आधार न होना, सबूतों की कमी आदि।
  • उच्च न्यायालय में रिट याचिका: अगर शिकायत गलत तरीके से खारिज की गई है तो हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
  • पुनर्विचार याचिका: मजिस्ट्रेट के समक्ष पुनर्विचार का आवेदन कर सकते हैं।

किस प्रकार के मामलों में आमतौर पर मजिस्ट्रेट को शिकायत करना ज्यादा कारगर होता है?

  • हत्या, बलात्कार, अपहरण जैसे गंभीर अपराध
  • पुलिस की निष्क्रियता या पक्षपात
  • साइबर क्राइम या आर्थिक अपराध
  • पारिवारिक विवाद, घरेलू हिंसा के मामले

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय

  • प्रियंका श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2015): सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत आवेदन के साथ हलफनामा अनिवार्य है। यह निर्देश मजिस्ट्रेटों को शिकायतों की सच्चाई की जांच करने के लिए प्रेरित करता है और झूठी शिकायतों से बचने में मदद करता है।
  • ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2013): इस निर्णय में कोर्ट ने कहा कि यदि शिकायत में संज्ञेय अपराध का स्पष्ट संकेत है, तो एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है। हालांकि, यदि शिकायत में संज्ञेय अपराध का स्पष्ट संकेत नहीं है, तो पुलिस प्रारंभिक जांच कर सकती है।

निष्कर्ष

मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत करना नागरिकों के लिए न्याय प्राप्ति का एक सशक्त माध्यम है। जब पुलिस निष्क्रिय रहती है या अन्याय होता है, तो BNSS की धाराएं 175(3) और 223 के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाना हर नागरिक का कानूनी अधिकार है। सही प्रक्रिया अपनाकर और उचित दस्तावेज के साथ कार्यवाही की जाए तो आम आदमी भी अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है।

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FAQs

1. FIR न होने पर सीधे कोर्ट जाना सही है या पहले SP को शिकायत करें?

पहले SP को लिखित शिकायत करें, यदि कोई कार्रवाई न हो तो मजिस्ट्रेट के पास जा सकते हैं।

2. धारा 175(3) और 223 में क्या अंतर है?

156(3) में पुलिस जांच का आदेश लिया जाता है जबकि 200 में मजिस्ट्रेट खुद संज्ञान लेते हैं।

3. मजिस्ट्रेट के सामने शिकायत करने में कितना समय लगता है?

शिकायत की जटिलता और कोर्ट की व्यस्तता पर निर्भर करता है, सामान्यतः कुछ दिनों से लेकर कुछ सप्ताह लग सकते हैं।

4. क्या वकील के बिना भी मजिस्ट्रेट को शिकायत कर सकते हैं?

हां, लेकिन कानूनी भाषा और प्रक्रिया में गलती न हो इसलिए वकील की मदद लेना बेहतर है।

5. मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस को जांच के आदेश देने के बाद क्या प्रक्रिया होती है?

पुलिस FIR दर्ज कर जांच शुरू करती है और फिर रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को सौंपती है।

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