अवैध निर्माण क्या है?
भारत में किसी भी जमीन पर निर्माण कार्य शुरू करने से पहले ज़रूरी होता है कि स्थानीय प्रशासन या विकास प्राधिकरण से उचित अनुमति (Building Plan Approval) ली जाए। जब किसी संरचना का निर्माण बिना स्वीकृति, ज़ोनिंग नियमों या निर्माण मानकों का पालन किए बिना किया जाता है, तो वह निर्माण “अवैध” (Illegal Construction) कहलाता है।
अवैध निर्माण दो प्रकार का हो सकता है:
- प्राइवेट ज़मीन पर अनधिकृत निर्माण
- सरकारी/सार्वजनिक ज़मीन पर अनधिकृत कब्ज़ा
प्राइवेट ज़मीन पर अवैध निर्माण के उदाहरण:
- यदि कोई ज़मीन मालिक निर्माण परमिट के बिना अपने प्लॉट पर निर्माण करता है।
- यदि भवन निर्माण में बिल्डिंग बायलॉज या फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI) का उल्लंघन किया गया हो।
- निर्माण ऐसा है जो निर्धारित ज़ोनिंग नियमों का पालन नहीं करता (जैसे कि रिहायशी ज़ोन में कमर्शियल गतिविधि)।
सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा:
जब कोई व्यक्ति या समूह ऐसी भूमि पर निर्माण करता है जो राज्य सरकार, नगर निगम या अन्य सार्वजनिक निकाय की हो, तो इसे सार्वजनिक भूमि पर अनधिकृत निर्माण कहा जाता है।
यह समस्या आमतौर पर बढ़ती आबादी, गरीबी, और बेरोज़गारी जैसे कारणों से उत्पन्न होती है।
अवैध निर्माण को रोकने के उपाय:
1. स्थानीय निकाय या नगर निगम को शिकायत दर्ज कराना
- नगर निगम या नगर विकास प्राधिकरण के भवन निरीक्षण विभाग में लिखित शिकायत करें।
- अवैध निर्माण की फोटो, वीडियो और स्थान की जानकारी साथ में दें।
2. पुलिस की भूमिका
- पुलिस तत्काल हस्तक्षेप नहीं करती जब तक संबंधित प्राधिकरण से निर्देश न मिले हों।
- लेकिन रिपोर्ट दर्ज कराई जा सकती है, जिसे आगे नगर निगम को भेजा जाता है।
3. हाई कोर्ट में याचिका (Writ Petition)
- यदि प्रशासन कार्रवाई नहीं कर रहा, तो आर्टिकल 226 के तहत हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की जा सकती है।
- कोर्ट नगर निगम या प्रशासन को निर्माण रोकने या हटाने के आदेश दे सकता है।
सार्वजनिक भूमि पर कब्जा हटाने के कानून:
“सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) अधिनियम, 1971″ इस तरह के मामलों में लागू होता है।
प्रमुख प्रावधान:
| सेक्शन | विवरण |
| धारा 5 | अवैध कब्जाधारियों को बेदखल करने की प्रक्रिया |
| धारा 5A – 5C | प्रॉपर्टी ऑफिसर को निर्माण रोकने और हटाने के अधिकार |
| धारा 7 | नुकसान या वस्तुओं के हटाने की जिम्मेदारी मालिक की होगी |
यदि किसी धार्मिक स्थल, सरकारी भूमि, पार्क, सड़क आदि पर अवैध निर्माण है, तो इस अधिनियम के तहत कार्रवाई हो सकती है।
अहम न्यायिक टिप्पणी और उदाहरण:
- दिल्ली उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में यह स्पष्ट किया है कि अवैध निर्माणों को संरक्षित नहीं किया जा सकता, भले ही उसमें लोग रह रहे हों।
- सीलिंग अभियान और मालवीय नगर, दिल्ली जैसे मामलों में कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिए कि नागरिक निकायों की लापरवाही या भ्रष्टाचार, अवैध निर्माण की कानूनी मान्यता नहीं बन सकती।
क्या करें अगर प्रशासन कार्रवाई नहीं कर रहा?
- क्षेत्रीय विधायक या पार्षद से मिलकर प्रशासन पर दबाव डालें।
- आरटीआई फाइल कर पूछें कि निर्माण वैध है या नहीं।
- जनहित याचिका (PIL) दाखिल करें यदि निर्माण से सार्वजनिक हित प्रभावित हो रहा है।
निष्कर्ष
भारत जैसे विविधतापूर्ण और तेजी से शहरीकरण वाले देश में अवैध निर्माण एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जो न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक असमानता, पर्यावरणीय जोखिम और नागरिक सुरक्षा के लिए भी खतरा है। किसी भी नागरिक को अधिकार है कि वह अपने क्षेत्र में अवैध निर्माण की शिकायत करे और प्रशासनिक व न्यायिक माध्यमों से इसे रोकने की मांग करे।
चाहे मामला प्राइवेट प्लॉट पर बिना अनुमति निर्माण का हो या सरकारी जमीन पर अतिक्रमण का, कानूनन समाधान मौजूद है। विशेष रूप से, हाई कोर्ट के पास आर्टिकल 226 के तहत हस्तक्षेप करने की शक्ति है जब प्रशासनिक निकाय निष्क्रिय हो जाएं।
कानूनी जागरूकता, समय पर शिकायत, और न्यायिक हस्तक्षेप ही ऐसे अवैध निर्माणों को रोकने का प्रभावी उपाय है।
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FAQs
1. क्या बिना नक्शा पास कराए निर्माण करना अवैध है?
हाँ, किसी भी प्रकार का निर्माण बिना सरकारी स्वीकृति के अवैध माना जाता है।
2. क्या सरकारी ज़मीन पर अवैध निर्माण के खिलाफ कोर्ट जा सकते हैं?
हाँ, आप आर्टिकल 226 के तहत हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं।
3. पुलिस सीधे निर्माण रोक सकती है?
नहीं, जब तक संबंधित विभाग से लिखित आदेश न मिले, पुलिस सीधे कार्रवाई नहीं कर सकती।
4. अवैध निर्माण हटाने में कितना समय लगता है?
यह निर्भर करता है कि शिकायत कब की गई, प्रशासन की तत्परता कैसी है, और कोर्ट की प्रक्रिया क्या कहती है।



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