सेल डीड (Sale Deed) कैसे तैयार किया जाता है ?

सेल डीड (Sale Deed) कैसे तैयार किया जाता है ?

सेल डीड (Sale Deed) कैसे तैयार की जाती है ? 

अगर आप किसी प्रापर्टी को खरीदने या बेचने की प्रक्रिया में शामिल रहे होंगे, तो आपने “सेल डीड”  शब्द को सुना होगा। अच्छे से समझने के लिए, सेल डीड एक महत्वपूर्ण कानूनी दस्तावेज़ होता है जो बेचने वाले से खरीददार तक संपत्ति के स्वामित्व को वेरिफाई करता है। इस लेख में, हम आपको बताएंगे कि सेल डीड क्या होता है और यह कैसे तैयार की जाती है।

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सेल डीड क्या है ? 

सेल डीड, जिसे ‘कन्वेयन्स डीड’ भी कहा जाता है, एक लीगल डाक्यूमेंट होता है जो एक पक्ष से दूसरे पक्ष के पास संपत्ति के स्वामित्व की स्टेबिलिटी का संकेत देता है। यह बेचने वाले और खरीददार के बीच संपत्ति की बिक्री और खरीदने के बीच लिखित रूप से काम करता है और उनके अधिकार और कर्तव्यों को व्यक्त करता है। 

सेल डीड के मुख्य रूप से निम्नलिखित चीजें शामिल होती हैं

एक अच्छे तरीके से तैयार की गई सेल डीड में कई महत्वपूर्ण घटक होते हैं जो इसकी वैधता और प्रभाव को  सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक होते हैं:

दोनों पक्ष 

सेल डीड में शामिल होने वाले पक्षों की पहचान स्पष्ट रूप से की जानी चाहिए – बेचने वाला और खरीददार। उनके नाम, पते और अन्य प्रासंगिक विवरण सही तरीके से दर्शाए जाने चाहिए। इससे पक्षों की पहचान के संदर्भ में कोई अस्पष्टता नहीं होती है।

प्रापर्टी की जानकारी

प्रापर्टी के बारे में सटीक विवरण अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें संपत्ति का पता, आयाम, सीमाएँ और कोई पहचाने जाने वाली विशेषताएँ शामिल हैं। इस प्रकार से लिखित विस्तृत विवरण संपत्ति के स्थान और विशेषताओं के बारे में कोई भ्रांति नहीं होने देते।

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बिक्री राशि

सेल डीड में संपत्ति की मूल्यांकन राशि (बिक्री मूल्य) को स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए। मूल्य की राशि की संख्यात्मक और शब्द रूप में मेल करना चाहिए, ताकि कोई संदेह नहीं होता।

भुगतान के तरीके 

किसी भी सहमति पर आधारित भुगतान की शर्तें, जैसे पेशेवर भुगतान, किस्तें, या भुगतान का तरीका, स्पष्ट रूप से उल्लेखित होने चाहिए। इससे भुगतान से संबंधित विवादों की प्राप्ति नहीं होती है। कभी-कभी सेल डीड में कुछ पैसे विक्रेता द्वारा बाकी रख लिए जाते हैं जो एक निश्चित समय पर देने की बात कही जाती है यदि ऐसा कुछ है उसे ही उल्लेखित किया जाना चाहिए।

अथारिटी और ड्यूटी

डाक्यूमेंट में संपत्ति के स्वामित्व के बाद दोनों पक्षों के अधिकार, जिम्मेदारियों, और दायित्वों की सूची दी जानी चाहिए। इसमें संपत्ति की देखभाल, कर, आदि दूसरे व्यक्ति पर‌ बोझ न बनें जिसने प्रापर्टी बेच दी है।

सेल डीड को तैयार कैसे करें ? 

कानूनी तरीके से बनाई गई सेल डीड की वैधता और प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए कई स्टेप फालो कर सकते हैं , आमतौर पर यह वकीलों की सहायता से किया जाता है। संक्षेप में इसे निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है:

डीड की ड्राफ्ट मेकिंग

पहला कदम डीड की ड्राफ्टिंग होता है। इसे बनाने में सभी प्रासंगिक विवरण सही तरीके से शामिल किए जाने चाहिए। यहां कानूनी विशेषज्ञों की मदद का सहारा लिया जा सकता है।

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स्टैम्प पेपर और नोटरीकरण

फिर, सेल डीड को न्यायिक अधिकारिक कागज़ पर प्रिंट किया जाता है, जिसका मूल्य राज्य के स्टैम्प एक्ट के अनुसार तय होता है। प्रिंट के बाद, इसे बेचने वाले और खरीददार दोनों द्वारा हस्ताक्षर किए जाते हैं। इसके बाद, डाक्यूमेंट को नोटरीकरण करके उसकी प्रामाणिकता की पुष्टि की जाती है।

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सेल डीड और रजिस्ट्री में क्या अंतर है ? 

सेल डीड और रजिस्ट्री संपत्ति प्राप्ति के दो प्रकार के डॉक्यूमेंट्स हैं जिन्हें भूमि संपत्ति की मालिकी के प्रमाण के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, लेकिन इनमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं:

सेल डीड (Sale Deed)

सेल डीड एक डॉक्यूमेंट होता है जिसमें एक व्यक्ति या संगठन द्वारा उनकी संपत्ति को किसी अन्य व्यक्ति को बेचने की प्रक्रिया को दर्शाया जाता है। इसमें विशिष्ट संपत्ति की जानकारी, मूल स्वामित्व, बेचने वाले और खरीददार की जानकारी, कीमत, समय-सीमा, विशेष शर्तें आदि शामिल होती हैं। सेल डीड का उद्देश्य संपत्ति की स्वामित्व स्थिति को बदलना होता है।

रजिस्ट्री (Registry)

रजिस्ट्री एक डॉक्यूमेंट होता है जिसमें संपत्ति की स्थानिक पंजीकरण की प्रक्रिया को दर्शाया जाता है। रजिस्ट्री के माध्यम से संपत्ति का स्थानिक पंजीकरण किया जाता है ताकि संपत्ति की मालिकी स्थानिक अधिकारों के साथ स्थायी रूप से स्थापित हो सके। रजिस्ट्री द्वारा संपत्ति के स्थानिक अधिकारों की सुरक्षा होती है और संपत्ति का स्वामित्व सिद्ध होता है।

इन दोनों डॉक्यूमेंट्स का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि संपत्ति की बेचने और खरीदने की प्रक्रिया में स्पष्टता और सुरक्षा हो, ताकि संपत्ति के मालिक और खरीददार के अधिकार सुरक्षित रहें।

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