चेक पर केवल साइन कर देना एनआई एक्ट के तहत अपराध नहीं है।

चेक पर केवल साइन कर देना एनआई एक्ट के तहत अपराध नहीं है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट और उसकी धारा 138 के तहत एक अहम फैसला सुनाया है। मन मोहन पटनायक बनाम सिस्को सिस्टम्स कैपिटल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य के मामले में सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का यह फैसला सामने आया है।

न्यायालय ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया किसी चेक पर केवल हस्ताक्षर कर देने मात्र से ही व्यक्ति निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के अन्तर्गत दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। दिल्ली उच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अनूप जयराम भम्भानी कर रहे थे।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अनूप जयराम भम्भानी ने कहा कि यह अपराध तब शुरू होता है जब बैंक द्वारा धन की कमी के कारण चेक का भुगतान नहीं किया जाता है। उन्होंने मामले की सुनवाई करते हुए आगे जोड़ा कि ” कंपनी के एक अधिकारी पर दोषारोपित होने के लिए कम से कम, अधिकारी को कंपनी के व्यापार और मामलों के लिए जिम्मेदार होना चाहिए और उस तारीख को चेक का सम्मान करने के लिए जिम्मेदार होना चाहिए, जिस दिन चेक अवैतनिक लौटाया गया था।”

दिल्ली उच्च न्यायालय ने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत दर्ज एक शिकायत के मामले में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा पारित 19 सितंबर, 2019 के सम्मन आदेश को चुनौती देती हुई याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता पर आरोप थे कि उस ने 30 जुलाई 2018 और 30 अगस्त 2018 को चेक पर हस्ताक्षर किए थे। यहां यह बात भी ध्यान रखने लायक है कि याचिकाकर्ता चेक पर हस्ताक्षर करते समय मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी के रूप में कार्यरत था थे परन्तु वह 6 जनवरी, 2018 को ही सेवानिवृत्त हो चुके थे।

इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 से यह बात साफ है कि इस के अंतर्गत अपराध बैंक द्वारा चेक को वापस किया जाना है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने भले ही चेक पर सह-हस्ताक्षर किए हों लेकिन चेक पेश किए जाने से नौ महीने पहले वह कंपनी से सेवानिवृत्त हो गए थे। इसलिए पहली नज़र में, एनआई अधिनियम की धारा 141 में निहित प्रावधान याचिकाकर्ता पर लागू नहीं होगा, क्योंकि वह धारा 138 में परिभाषित अपराध की तारीख पर प्रतिवादी कंपनी के मामलों के प्रभारी नहीं थे। उक्त कथन के बाद न्यायालय ने याचिकाकर्ता की आपराधिक शिकायत पर अगले आदेश आने तक रोक लगा दी।

क्या है निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138

नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स को ” एक प्रॉमिसरी नोट, एक्सचेंज के बिल या चेक या तो ऑर्डर करने या वाहक को देय” के रूप में परिभाषित करती है। एक परक्राम्य लिखत एक प्रकार का दस्तावेज है जो अपने धारक को मांग पर या किसी भविष्य की तारीख पर देय होने की गारंटी देता है। एनआई अधिनियम की धारा 138 एक दंडात्मक प्रावधान है जो चेक के अनादर की सजा से संबंधित है।

एनआई अधिनियम की धारा 138 एक दंडात्मक प्रावधान है जो चेक के अनादर की सजा से संबंधित है। चेक का अनादर एक अपराध बनने के लिए इस में निम्नलिखित सामग्री होनी चाहिए:

  1. एक ड्रॉअर होना चाहिए जो चेक को ड्रॉ करने के लिए हो।
  2. आहरित चेक कुछ दायित्व के निर्वहन में होना चाहिए।
  3. अदाकर्ता बैंक को चेक की प्रस्तुति।
  4. अपर्याप्त धनराशि के कारण बैंक द्वारा लौटाया गया चेक।
  5. चेक को उसके आहरित होने की तारीख से छह महीने के भीतर या उसकी वैधता की अवधि के भीतर जो भी पहले हो, प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  6. बैंक से वापसी का मेमो प्राप्त होने के तीस दिनों के भीतर, उक्त धन के भुगतान की मांग के लिए एक नोटिस दिया जाना चाहिए।
  7. उक्त नोटिस प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर उक्त धन का भुगतान करने में विफलता।
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एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध एनआई एक्ट की धारा 147 के तहत कंपाउंडेबल हैं।

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