सेक्शन 41ए का गैर-अनुपालन

सेक्शन 41ए का गैर-अनुपालन

भारत के अंदर कानून और मुकदमेबाजी  की फील्ड में, यह आमतौर पर जाना जाता है कि अगर आप अपने केस से डील करने के लिए लीगल प्रोसेस में एंटर कर रहे हैं तो यह एक लंबी प्रोसेस है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कोर्ट को फैसला सुनाने में सालों लग जाते हैं, लेकिन जुडिशरी का सबसे मेन फीचर निर्दोष की रक्षा करना है। देरी कई इश्यूज को भी जन्म देती है और पेंडिंग केसिस के लंबे समय तक चलने से लोगों पर भी बड़ा प्रभाव पड़ता हैं। हर नागरिक को एक प्रभावी, निष्पक्ष और जल्दी परीक्षण का मौलिक अधिकार है।

समयबद्ध तरीके से केसिस को सॉल्व करने में देरी के कई रीज़न्स है, इन रीज़न्स को नीचे बताया गया है – 

  • जज और नागरिकों का अनुपात और साथ ही जुडिशल वैकेंसिस:
  • कोर्ट्स की अपर्याप्त संख्या:
  • नियमित स्थगन
  • जजिज़ का ट्रांसफर:
  • अपीलों की भारी संख्या:
  • पार्टियों की गैर मौजूदगी :

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

इसी मैटर पर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में बताया गया है कि मुकदमे, अपील या बदलाव को ख़त्म करने में एक अनएक्सप्लेनड और गैर-जरूरी देरी बेल पर विचार करने का एक फैक्टर होगा।

जजिज़ ने ऑब्ज़र्व किया कि वे कोर्ट्स से सीआरपीसी के सेक्शन 309 को लागू करने की उम्मीद करते हैं, जो दिन-प्रतिदिन की कार्यवाही पर विचार करते हुए एक्सेप्शन्स को खारिज करती है और कोर्ट केसिस को पोस्टपोर्न करने की पावर देती है।

दूसरी तरफ, बेंच की राय थी कि किसी भी गलत देरी की सिचुएशन में, आरोपी को उसी के प्रॉफिट का हकदार होना चाहिए, भले ही आरोपी को क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के सेक्शन 436 ए के तहत प्रॉफिट मिले।

सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित डिरेक्शंस जारी किए:

  • बेल की ग्रांटिंग को सुव्यवस्थित करने के लिए, भारत सरकार बेल एक्ट के रूप में एक विशिष्ट एक्ट शुरू करने पर विचार कर सकती है।
  • इन्वेस्टीगेशन ऑथिरिटीज़ और उनके ऑफिसर को क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के सेक्शन 41 और 41ए के साथ-साथ अर्नेश कुमार (सुप्रा) में इस कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों/इंस्ट्रक्शंस का पालन करना चाहिए।
  • कोर्ट्स को संतुष्ट होना चाहिए कि क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के सेक्शन 41 और 41 ए का पालन किया गया था। अनुपालन करने में विफलता के परिणामस्वरूप आरोपी को बेल दी जा सकती है। 
  • जब कोड  सेक्शन 88, 170, 204 और 209 के तहत एप्लीकेशन पर विचार किया जा रहा हो तो बेल एप्लीकेशन की जरूरत नहीं है।
  • इस कोर्ट के सिद्धार्थ फैसले में दिए गए आर्डर को ठीक से पूरा किया जाना चाहिए (जिसमें यह माना गया था कि इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर्स को चार्जशीट फाइल करते समय प्रत्येक आरोपी को अरेस्ट करने की जरूरत नहीं है)।
  • स्टेट और सेंट्रल गवर्नमेंट्स स्पेशल कोर्ट्स की स्थापना पर इस कोर्ट द्वारा जारी किये गए इंस्ट्रक्शंस को रेगुलरली फॉलो करें। राज्य सरकारों के सहयोग से हाई कोर्ट को स्पेशल कोर्ट्स की जरूरतों पर विचार करने की जरूरत होगी। स्पेशल कोर्ट प्रेसिडिंग ऑफिसर्स के खली पोसिशन्स को जल्द ही भरा जाना चाहिए।
  • हाई कोर्ट्स को ऐसे अपराधियों को ढूंढ़ने के लिए कहा गया है जो बेल की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं। उसके बाद, कोड के सेक्शन 440 के अनुसार, रिहाई में हेल्प के लिए उपयुक्त उपाय किए जाने चाहिए।
  • शियॉरिटीज़ की जरूरत होने पर कोड के सेक्शन 440 के अधिदेश पर विचार किया जाना चाहिए।
  • एक इंटरफेयर करने वाले एप्लीकेशन के एक्सेप्शन के साथ, बेल ऍप्लिकेशन्स को दो हफ्ते के अंदर तय किया जाना चाहिए, जब तक कि कानून अन्य निर्देश ना दें। किसी भी इंटरफेर करने वाले एप्लीकेशन को छोड़कर, इंटरिम बेल एप्लीकेशन को छह जफ्ते के अंदर तय किया जाना है।
  • सभी स्टेट गवर्नमेंट, यूनियन टेर्रीटोरीज़ और हाई कोर्ट्स को चार महीने के अंदर एफिडेविट/सिचुएशन रिपोर्ट फाइल करनी होगी।
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