अगर रेप पीड़िता प्रेग्नेंट होती है तो उसके कानूनी अधिकार क्या है?

अगर रेप पीड़िता प्रेग्नेंट होती है तो उसके कानूनी अधिकार क्या है

दो जजों की बेंच ने पिछले साल पास हुए उस आर्डर को रद्द कर दिया, जब कोर्ट ने कहा था कि एक महिला के पेट में पल रहे भ्रूण या बच्चे को संविधान के आर्टिकल 21 के तहत जीने का अधिकार है।

राजस्थान हाई कोर्ट ने कहा कि एक महिला की अपने बच्चे को जन्म देने की पंसद उसका एक मौलिक अधिकार है, और इस बात पर जोर दिया कि एक रेप पीड़िता के पेट में पल रहे बच्चे को गिराने का मौलिक अधिकार उस बच्चे के पैदा होने के अधिकार से कहीं ज्यादा जरूरी है।

ऐसा करते हुए, जज पुष्पेंद्र सिंह भाटी और संदीप मेहता की बेंच ने पिछले साल एक जज की बेंच द्वारा पास किये गए एक आर्डर को रद्द कर दिया, जब कोर्ट ने कहा था कि बच्चे को संविधान के आर्टिकल 21 के तहत जीवन का अधिकार था।

गर्भपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फ़ैसला भी लिया गया और कोर्ट ने प्रेग्नेंट रेप पीड़ितों के मामलों से डील करने के लिए अधिकारियों को कुछ निर्देश/इंस्ट्रक्शंस भी दिए गए है। 

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बेंच ने राज्य सरकार को प्रेग्नेंट रेप पीड़ितों के लिए समय पर चिकित्सा और कानूनी सहायता के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का आर्डर पास किया था। साथ हुई यह भी आर्डर दिया गया कि प्रेग्नेंट रेप पीड़िता द्वारा एबॉर्शन के किसी भी आवेदन पर अधिकारियों द्वारा 3 दिनों के अंदर कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए और अगर कोई कोर्ट मामले पर विचार करती है, तो लड़की के अभिभावक या गार्डियन की सहमति का होना जरूरी है।

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कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि अगर महिला को प्रेग्नेंट हुए 20 हफ्तों से ज्यादा हो गए है तो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के अनुसार, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को एबॉर्शन के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने में लड़की की मदद करनी चाहिए।

बच्चे के जन्म लेने का अधिकार 

इस केस में एक 17 साल की नाबालिग रेप पीड़िता शामिल थी, जिसने पिछले साल एबॉर्शन के लिए POCSO जज से संपर्क किया था। लोअर कोर्ट ने, हालांकि उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया, यह देखते हुए कि वह पहले ही 1971 के एक्ट द्वारा लगाए गए 20 हफ्ते की प्रेग्नेंसी की सीमा को पार कर चुकी थी।

बच्चे के जन्म, माँ के लिए खतरा

इसके बाद लड़की ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने पहले भी बच्चे के जीवन के अधिकार पर रौशनी डालते हुए उसकी पिटीशन खारिज कर दी।  इसी प्रकार बच्चे के जीवन के अधिकार पर भी विचार किया जाना जरूरी है। भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत भारत के संविधान द्वारा दिए गए जीवन के अधिकार को अकेले पीड़ित के लिए लागू नहीं किया जा सकता है। आर्टिकल 21 की सुरक्षा बच्चे के जन्म के लिए तब तक ही उपलब्ध है, जब तक कि बच्चे की सुरक्षा मां के जीवन के लिए एक प्रमुख खतरा ना हो।

लड़की ने तब एबॉर्शन कराने से मना कर दिया था जबकि नवजीवन संस्थान नाम की एक संगठन या आर्गेनाईजेशन द्वारा बच्चे की कस्टडी लेने के लिए फाइल एक आवेदन को अनुमति दी थी।

बिना शर्त के एबॉर्शन का अधिकार 

बाद में कोर्ट ने जोधपुर के जिला कलेक्टर को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि नाबालिग लड़की के पैदा होने वाले बच्चे की ठीक तरह से देखभाल की जानी चाहिए और यह भी सुनिश्चित करने के आदेश दिए कि अगर बच्चे को गोद नहीं लिया जाता है, तो उसका अच्छे स्कूल में एडमिशन कराया जाना चाहिए।

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