क्या बालिग बच्चे अपने माता-पिता के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत कर सकते हैं?

Can adult children file a complaint of domestic violence against their parents?

जब हम “घरेलू हिंसा” शब्द सुनते हैं, तो अक्सर हमारे मन में पति-पत्नी के झगड़े की तस्वीर बनती है। लेकिन अगर हिंसा आपके अपने माता-पिता की तरफ से हो, और आप अब बच्चे नहीं बल्कि बड़े (बालिग) हो चुके हों, तब क्या?

क्या 25 साल की एक लड़की या 30 साल का लड़का, जो मानसिक या शारीरिक शोषण झेल रहा है, कानूनी कार्रवाई कर सकता है?

इसका जवाब है – हां, बालिग बच्चे भी अपने माता-पिता के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए कुछ नियम और कानूनी शर्तें होती हैं। यह ब्लॉग इसी जरूरी लेकिन कम चर्चा किए गए मुद्दे को आसान भाषा में समझाता है, ताकि जो लोग अपने ही घर में शोषण का शिकार हो रहे हैं, वे अपने अधिकार जान सकें और सही कदम उठा सकें।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

घरेलू हिंसा क्या है?

घर को हमेशा एक सुरक्षित स्थान माना जाता है, लेकिन क्या हो जब हिंसा घर के अंदर ही होने लगे? घरेलू हिंसा केवल पति-पत्नी के बीच की समस्या नहीं है, यह परिवार के किसी भी सदस्य के साथ हो सकती है, चाहे वह महिला हो, बुजुर्ग हो, या बालिग बेटा या बेटी।

घरेलू हिंसा सिर्फ मारपीट नहीं होती। इसमें कई तरह के अत्याचार शामिल होते हैं, जैसे:

  • मानसिक शोषण – ताना मारना, धमकाना, बेइज़्ज़ती करना
  • बोलचाल से शोषण – गाली देना, हर बात में बुराई करना
  • आर्थिक शोषण – पैसे पर कंट्रोल रखना, ज़रूरी खर्चों के लिए पैसे न देना
  • यौन शोषण – जबरदस्ती या मानसिक दबाव डालना
  • शारीरिक हिंसा – मारना, थप्पड़ मारना, पीटना

भारत में घरेलू हिंसा से जुड़ा मुख्य कानून है, डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट, 2005 यह कानून खासकर महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया है, लेकिन इसमें घर के अंदर रिश्तों में होने वाली किसी भी तरह की हिंसा को शामिल किया गया है।

कानून क्या कहता है?

डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के तहत कौन शिकायत दर्ज कर सकता है?

धारा 2(f) के अनुसार, घरेलू रिश्ता मतलब ऐसा रिश्ता जहाँ दो लोग एक ही घर में साथ रहते हैं या पहले रह चुके हैं और उनका रिश्ता:

  • खून का हो (जैसे माँ-बाप और बच्चे),
  • शादी का हो,
  • पति-पत्नी जैसा रिश्ता हो (बिना शादी के साथ रहना),
  • गोद लेने का रिश्ता हो, या
  • परिवार के सदस्य की तरह साथ रहना हो।

इसका मतलब है कि कोई बेटी या बहू अपने मातापिता या सासससुर के खिलाफ शिकायत कर सकती है, अगर वह उनके साथ एक ही घर में रही हो और उसी दौरान उसके साथ हिंसा हुई हो।

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क्या पुरुष भी इस एक्ट के तहत मदद ले सकते है?

यह एक्ट सिर्फ महिलाओं के लिए है। इसका मतलब है कि कोई भी पुरुष (जैसे बेटा) इस कानून के तहत शिकायत नहीं कर सकता, भले ही उसके साथ माता-पिता ने बुरा व्यवहार किया हो।

लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पुरुषों के पास कोई रास्ता नहीं है। अगर किसी बेटे को मातापिता मारते हैं, डराते हैं या घर में बंद कर देते हैं, तो वह इन कानूनों के तहत कार्रवाई कर सकता है:

  • भारतीय न्याय संहिता (BNS) – मारपीट, धमकी या जबरदस्ती बंधक बनाने के खिलाफ केस किया जा सकता है।
  • सिविल कानून – मानसिक उत्पीड़न या तंग करने के मामलों में भी केस किया जा सकता है, लेकिन ऐसे मामलों को साबित करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।

इसलिए अगर कोई पुरुष घरेलू हिंसा का शिकार है, तो वह दूसरे कानूनी रास्तों से अपनी सुरक्षा पा सकता है।

शिकायत कहां और कैसे करें?

अगर आप एक बालिग हैं और आपके माता-पिता ही आपको परेशान कर रहे हैं, तो आप नीचे दिए गए आसान कदमों से शिकायत कर सकते हैं:

प्रोटेक्शन ऑफिसर के पास जाएं: हर जिले में एक प्रोटेक्शन ऑफिसर होता है, जो घरेलू हिंसा के मामलों में मदद करता है। वो आपकी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं और कोर्ट से सुरक्षा का आदेश दिलवा सकते हैं।

हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क करें: अगर पीड़ित बालिग महिला है, तो वह 181 नंबर पर कॉल करके तुरंत मदद ले सकती है। यह एक ऑल इंडिया महिला हेल्पलाइन नंबर है जो 24×7 काम करता है। कॉल करने पर प्रशिक्षित काउंसलर आपकी बात सुनेंगे और ज़रूरत के अनुसार पुलिस, मेडिकल या लीगल मदद दिलवाएंगे।

नज़दीकी पुलिस स्टेशन में शिकायत करें: आप चाहें तो सीधे पुलिस स्टेशन जाकर भी शिकायत कर सकते हैं। पुलिस आपकी शिकायत लेकर मामला कोर्ट को भेजेगी।

मजिस्ट्रेट कोर्ट जाएं: कोर्ट में मजिस्ट्रेट नीचे दिए गए आदेश दे सकते हैं:

  • प्रोटेक्शन ऑर्डर – जिससे माता-पिता को आपको परेशान करने से रोका जा सके।
  • रेजिडेंस आर्डर – जिससे आपको घर में रहने का हक मिल सके।
  • मोनेटरी रिलीफ – इलाज या नौकरी छूटने के नुकसान का खर्च।
  • कस्टडी आर्डर – अगर आपके बच्चे हैं तो उनकी देखभाल का आदेश।
  • कंपनसेशन आर्डर – मानसिक तकलीफ के लिए मुआवज़ा।

आपको इस प्रक्रिया के लिए वकील की जरूरत नहीं होती, लेकिन अगर मामला थोड़ा मुश्किल हो तो वकील की मदद लेना अच्छा रहेगा।

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ध्यान रखें: आपकी सुरक्षा और अधिकार सबसे ज़रूरी हैं। डरें नहीं, कानून आपके साथ है।

बालिग बच्चे माता-पिता के खिलाफ शिकायत करें तो क्या मुश्किलें आती हैं?

  • समाज की सोच: अपने ही माता-पिता के खिलाफ केस करना समाज में गलत माना जाता है। लोग अकसर पीड़ित की जगह दोष उस पर ही डालते हैं।
  • सबूत की कमी: मानसिक या जुबानी शोषण को साबित करना मुश्किल होता है, क्योंकि चोट दिखती नहीं। इसलिए गाली-गलौच के मैसेज, ऑडियो रिकॉर्डिंग या कोई भी सबूत संभाल कर रखें।
  • परिवार का दबाव: रिश्तेदार अकसर कहते हैं कि बात को घर में ही सुलझा लो और केस मत करो। इससे न्याय मिलने में देर हो सकती है।
  • आर्थिक या भावनात्मक निर्भरता: कई बार बड़े बच्चे अपने माता-पिता पर पैसों या भावनाओं के लिए निर्भर होते हैं। ऐसे में शिकायत करना और मुश्किल हो जाता है।
  • याद रखें: आपके अधिकार और आपकी मानसिक शांति सबसे ज़रूरी हैं। अगर आप तकलीफ में हैं, तो मदद लेना गलत नहीं है।

क्या समाधान का कोई विकल्प है?

जी हाँ, हर समस्या का समाधान सिर्फ कोर्ट में केस दर्ज करना ही नहीं होता। कई बार घरेलू मामलों में कानूनी प्रक्रिया से पहले कुछ वैकल्पिक समाधान अपनाने से भी सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं। खासकर जब रिश्तों की बात हो, तो रिश्तों को तोड़े बिना समस्या का समाधान ढूँढना ज्यादा समझदारी होती है। आइए जानते हैं कुछ संभावित विकल्प:

  • माता-पिता और बच्चों में संवाद की कमी हो तो काउंसलर की मदद से बात साफ हो सकती है।
  • कोर्ट से बाहर समाधान के लिए मीडिएटर की मदद लें जो दोनों पक्षों की बात सुनकर हल निकाले।
  • कई NGO कानूनी सलाह, मानसिक सहारा और ज़रूरत पर आश्रय देते हैं।
  • गांवों में पंचायत या बुजुर्गों की मदद से भी समझौता हो सकता है, बशर्ते सभी न्यायप्रिय हों।
  • किसी भी आपसी समझौते को लिखित में लेकर दोनों पक्षों से साइन करवाएं ताकि भविष्य में विवाद न हो।

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (2016)

सुप्रीम कोर्ट ने डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट, 2005 की धारा 2(q) में से ‘adult male’ शब्दों को हटाने का आदेश दिया था। इससे यह स्पष्ट हुआ कि अब महिलाएं और नाबालिग भी डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के तहत आरोपी हो सकते हैं। हालांकि, इस निर्णय में बालिग बच्चों द्वारा माता-पिता के खिलाफ शिकायत करने की स्थिति पर विशेष रूप से विचार नहीं किया गया।

सौरभ कपूर बनाम राज्य एवं अन्य (2023)

दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि यदि कोई बालिग बेटा अपने माता-पिता के साथ साझे परिवार में रह रहा है और मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित हो रहा है, तो वह भी डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के तहत राहत मांग सकता है। यह निर्णय दर्शाता है कि यह कानून केवल महिलाओं के लिए नहीं, बल्कि वयस्क पुरुषों के लिए भी लागू हो सकता है।

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निष्कर्ष

माता-पिता की तरफ़ से होने वाला अत्याचार सबसे दर्दनाक घरेलू हिंसा होती है, क्योंकि इसमें भावनाएं, परिवारिक रिश्ता और समाज का डर जुड़ा होता है। लेकिन याद रखें, अत्याचार, अत्याचार होता है, चाहे कोई भी करे।

अगर आप एक बालिग हैं और आपको अपने माता-पिता से मानसिक, शारीरिक या आर्थिक हिंसा का सामना करना पड़ रहा है, तो आप अकेले नहीं हैं। कानून आपकी मदद के लिए मौजूद है।

नेशनल कमिशन फॉर वूमेन (NCW) की साल 2022–2023 की रिपोर्ट के अनुसार, अब बालिग बेटियाँ भी अपने माता-पिता के ख़िलाफ़ शिकायतें कर रही हैं, जैसे ज़बरदस्ती शादी कराना, भावनात्मक ब्लैकमेल करना और गाली-गलौच या मारपीट करना।

इस रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2022 में महिलाओं की तरफ़ से कुल 30,957 शिकायतें मिलीं। इनमें से 9,710 शिकायतें “सम्मान के साथ जीने के अधिकार” (यानी मानसिक शोषण) से जुड़ी थीं और 6,970 शिकायतें घरेलू हिंसा से जुड़ी थीं। इस बढ़ती समस्या को देखते हुए NCW ने चिंता जताई है और सरकार से ज़्यादा काउंसलिंग सेंटर खोलने की माँग की है, ताकि महिलाओं को समय पर मदद मिल सके।

खुद के लिए आवाज़ उठाना कोई गलत बात नहीं है, यह एक जरूरी कदम है बेहतर और सुरक्षित जीवन की तरफ़।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1. क्या बेटा अपने पिता के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत कर सकता है?

हाँ, यदि वह मानसिक या शारीरिक हिंसा का शिकार है, तो वह शिकायत कर सकता है।

2. डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट में बालिग बेटे/बेटी को क्या अधिकार है?

अगर वह साझे परिवार में रहता है और हिंसा का शिकार है, तो सुरक्षा की मांग कर सकता है।

3. क्या माता-पिता को जेल हो सकती है?

अगर गंभीर अपराध साबित हो, तो भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत कार्रवाई हो सकती है।

4. क्या सिर्फ मानसिक शोषण पर शिकायत की जा सकती है?

हाँ, मानसिक शोषण भी घरेलू हिंसा की श्रेणी में आता है।

5. क्या ऐसे मामलों में समझौते की संभावना होती है?

हाँ, कोर्ट काउंसलिंग या मध्यस्थता का विकल्प दे सकता है।

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