हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856

हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856

हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 की वजह से हिन्दू विधवाओं को एक नया जीवन मिला है। एक ऐसा जीवन जो समाज कभी अपनी मर्जी से उन्हें जीने नहीं देता। लॉर्ड डलहौजी के द्वारा पारित कराये गए इस अधिनियम ने, 16 जुलाई 1856 को हिंदू विधवाओं के दोबारा शादी करने को वैध कर दिया था। जिससे विधवाओं को दोबारा शादीशुदा जीवन जीने का मौका मिला।

क्या इस अधिनियम से पहले विधवाओं की बुरी स्थिति थी? 

भारत में इस अधिनियम से पहले विधवाओं का जीवन चुनौतियों से भरा हुआ था। विधवाओं को उनके हस्बैंड की मृत्यु के बाद, एक संत की तरह जीवन जीना होता था। उन्हें श्रृंगार, नए कपड़े, अच्छा भोजन, त्योहारों आदि का त्याग करने पर मजबूर किया जाता था और उन्हें इस सबके बिना ही जीवन जीना पड़ता था। उन्हें परिवार और समाज के सदस्यों की डांट खाकर भी शांत रहना होता था। क्योंकि उन्हें परिवार के लिए अशुभ माना जाता था।

उन्हें मोटे मटेरियल की केवल सफेद साड़ी पहनने की परमिशन थी। अगर कोई बच्ची विधवा हो, तब भी उसे दोबारा शादी करने की अनुमति नहीं थी, चाहे शादी पूरी तरह से संपन्न भी ना हुई हो। हैरान करने वाली बात ये है कि विधवाओं की दोबारा शादी ना करने की प्रथा मुख्य रूप से अमीर हिंदू परिवारों में प्रचलित थी जबकि निम्न वर्ग और गरीब लोगों में विधवा पुनर्विवाह प्रचलित था।

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क्या है हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 के प्रावधान:- 

(1) भारत के पहले गवर्नर लॉर्ड कैनिंग ने भारत में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 को इम्प्लीमेंट किया था।

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(2) इस अधिनियम ने हिंदू विधवाओं के दोबारा शादी करने को वैध कर दिया था। 

(3) कानून के हिसाब से “हिंदुओं के बीच में हुई शादी अमान्य नहीं होगी। विधवाओं से शादी करना नाजायज नहीं होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि “किसी भी हिंदू रीति-रिवाज और कानून की व्याख्या, ऐसी शादी के विपरीत नहीं है।”

(4) विधवाओं से शादी करने वाले पुरुषों को भी इस अधिनियम के तहत कानूनी सुरक्षा प्रदान की जाती है।

(5) इस एक्ट के अनुसार विधवा को उसकी पहली शादी से मिली हुई विरासत और अधिकार प्राप्त करने का हक़ है। 

इस अधिनियमन के लागू होने के बाद; इस तरह की पहली शादी 7 दिसंबर 1856 को उत्तरी कलकत्ता में हुई थी। इसलिए हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 का अधिनियमन 19वीं शताब्दी में भारत में प्रमुख सामाजिक परिवर्तनों में से एक था। तब से देश में महिलाओं की अखंडता और शील की सुरक्षा के लिए बहुत से कानून बनाए गए हैं।

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