क्या ड्यूटी पर तैनात पुलिस वाले का वीडियो रिकॉर्ड करना वैध है?

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तकनीक के इस दौर में हम अक्सर अपने कानूनी बचाव के लिए भी इन तकनीकों का इस्तेमाल करने लगे हैं। पिछले कई वर्षों से इस ओर भी हमारा ध्यान गया है कि लोग यदि अपने सामने या अपने साथ कुछ ग़लत होता देखते हैं तो तुरंत ही उसकी वीडियो बना कर सबूत रख लेना चाहते हैं। कई बार लोग ट्रैफिक पुलिस और पुलिस कर्मचारियों के दुर्व्यवहार की भी वीडियो बनाने की कोशिश करते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या ड्यूटी पर तैनात पुलिस वाले का वीडियो रिकॉर्ड करना वैध है?

आज के इस आलेख में हम इसी बात को समझने का प्रयास करेंगे कि क्या ड्यूटी पर तैनात पुलिस वाले का वीडियो रिकॉर्ड करना वैध है?

हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को परिभाषित करता है। के एस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने इस बात पर गौर करते हुए निजता के अधिकार पर बात की। न्यायमूर्ति नरीमन ने इस फैसले में कहा इस अनुच्छेद के तहत एक पुलिस अधिकारी का अधिकार भी किसी अन्य सामान्य इंसान की तरह ही सुरक्षित है। लेकिन पुलिस अधिकारियों द्वारा ड्यूटी पर और अपने कार्यों के निर्वहन में किए गए कृत्यों को उनकी व्यक्तिगत स्वायत्तता का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है। इस प्रकार, वे निजता के अधिकार के दायरे में नहीं आते हैं। हालांकि ऑन-ड्यूटी पुलिस अधिकारी की रिकॉर्डिंग करते समय, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए।

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यदि किसी पुलिस अधिकारी या अन्य सरकारी कर्मचारी द्वारा अपने कार्य को नैतिकता से नहीं किया जाता है और उसकी वीडियो बना ली जाती है तो इस स्थिति में वीडियो बनाने वाला एक मुखबिर की तरह कार्य कर सकता है। 

किसी पुलिस वाले की ऑन ड्यूटी वीडियो रिकॉर्ड करने के मामले में केरल राज्य ने केरल राज्य पुलिस अधिनियम,2011 की धारा 33(2) में इसे लेकर प्रावधान दिए हैं। इस धारा के अनुसार किसी भी पुलिस अधिकारी को किसी नागरिक को सार्वजनिक रूप से की जाने वाली किसी भी पुलिस कार्रवाई या आचरण को कानूनी रूप से रिकॉर्ड करने से नहीं रोका जाना चाहिए।

साल 2008 में कोलकाता उच्च न्यायालय द्वारा भी एक मामले में फैसला सुनाते हुए यह कहा गया कि एक पुलिसकर्मी सिर्फ इसलिए मोबाइल फोन नहीं ले सकता क्योंकि उसका वीडियो बना लिया गया था क्योंकि वह अपने कर्तव्यों का पालन करने वाला एक लोक सेवक है।

यह बात ध्यान रखने योग्य है कि भले ही किसी पुलिस अधिकारी के वैध कार्य की रिकॉर्डिंग करना विधिक रूप से निषिद्ध नहीं है फिर भी यदि पुलिस अधिकारी से इसकी अनुमति ली जाए तो यह ज़्यादा बेहतर रहेगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारतीय दंड संहिता के अनुसार किसी लोक सेवक को उसके कार्य मे बाधा डालने के तहत सजा के प्रावधान हैं।

धारा 21 के अनुसार लोक सेवकों को परिभाषित किया गया है। इस परिभाषा के अनुसार किसी भी अधिकार का प्रयोग करते समय या इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त किसी दायित्व को पूरा करते समय सक्षम प्राधिकारी प्रत्येक मध्यस्थ और केंद्र सरकार या सक्षम प्राधिकारी द्वारा नियुक्त प्रत्येक अधिकारी को लोक सेवक माना जाएगा। इस प्रकार एक पुलिस अधिकारी भी इस धारा के अंतर्गत आएगा और एक लोक सेवक माना जाएगा। वहीं धारा 186 के तहत किसी भी लोक सेवक के कार्य में बाधा उतपन्न करना अपराध घोषित किया गया है। 

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हाल ही में बॉम्बे हाइकोर्ट द्वारा एक फैसले में कहा गया है कि 

आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (ओएसए) के तहत एक पुलिस स्टेशन को ‘निषिद्ध स्थान’ के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है। और साथ ही न्यायालय ने उस याचिका को भी खारिज़ कर दिया जिसमें एक व्यक्ति के खिलाफ “गुप्त रूप से” एक वीडियो शूट करने के लिए ‘जासूसी’ का आपराधिक मामला था।

उच्च न्न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की धारा 2 (8) में दी गई ‘निषिद्ध जगह’ की परिभाषा “संपूर्ण” है और “विशेष रूप से पुलिस स्टेशन शामिल नहीं है”। राज्य की सुरक्षा और हित के लिए हानिकारक कृत्यों से जुड़े अपराध में 3 साल से 14 साल की कारावास की सजा होती है।

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