आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला कब बनता है? केवल गाली-गलौज या अपमान, क्या काफी है?

When does a case of abetment to suicide arise Is mere abuse or insult enough

आज के सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में तनाव और मानसिक दबाव तेजी से बढ़ रहे हैं। युवा हों या बड़े, कई लोग निराशा के क्षणों में आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठा लेते हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, भारत में हर साल हजारों आत्महत्या के मामले दर्ज होते हैं।

जब कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो उसके पीछे की जिम्मेदारी की जांच की जाती है। क्या किसी ने उसे इस कदम के लिए उकसाया? क्या मानसिक उत्पीड़न इतना गंभीर था कि मरने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा?

यहाँ एक आम सवाल उठता है: “क्या सिर्फ गाली देना या अपमान करना भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 108 (धारा 306 IPC) के तहत अपराध बनता है?” यह सवाल संवेदनशील भी है और कानूनन जटिल भी।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

आत्महत्या के लिए उकसाने की परिभाषा – कानून क्या कहता है?

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप को समझने से पहले, यह जानना जरूरी है कि “उकसाना” का कानूनी मतलब क्या है। भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 45 के अनुसार, इसका का मतलब होता है जानबूझकर किसी अपराध को करने में मदद करना, प्रोत्साहित करना या सुविधा देना। इसलिए, आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि आरोपी ने जानबूझकर पीड़ित को आत्महत्या करने के लिए मदद दी, उसे मनाया या उकसाया।

आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाने के लिए निम्नलिखित बातें जरूरी हैं:

  • इरादा या जानकारी: आरोपी का इरादा होना चाहिए कि वह पीड़ित को आत्महत्या करने में मदद करेगा, या उसे यह पता होना चाहिए कि उसके शब्दों या कार्यों से पीड़ित आत्महत्या कर सकता है।
  • कारण संबंध: आरोपी के कार्यों और पीड़ित की आत्महत्या के बीच सीधा संबंध होना चाहिए।
  • उकसाना या प्रभाव: आरोपी के शब्दों या कार्यों का पीड़ित की आत्महत्या के फैसले पर असर या उकसाव होना चाहिए।

मुख्य बात यह है कि उकसाना का मतलब सिर्फ गुस्से में कुछ कह देना नहीं, बल्कि बार-बार या जानबूझकर ऐसा माहौल बनाना है जिससे व्यक्ति मजबूर हो जाए।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 108 के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी को आत्महत्या करने के लिए उकसाता है तो उसे दस साल तक की सजा, जुर्माना या दोनों हो सकता है।

क्या सिर्फ गाली देना या अपमान करना आत्महत्या के लिए उकसाने जैसा होता है?

सिर्फ गाली देना या अपशब्द कहना हमेशा आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जाता। लेकिन कुछ हालातों में ये अपराध बन सकता है। आइए आसान भाषा में समझते हैं:

सिर्फ गाली देना ही काफी नहीं होता

  • अगर कोई व्यक्ति किसी को गाली देता है या अपमान करता है, तो इससे सामने वाला दुखी हो सकता है।
  • लेकिन अगर उस व्यक्ति ने आत्महत्या की है, तो कोर्ट देखेगा कि क्या गाली देने और आत्महत्या के बीच कोई सीधा रिश्ता था या नहीं।
  • उदाहरण: अगर बॉस ने किसी कर्मचारी को गुस्से में डांट दिया और कर्मचारी ने आत्महत्या कर ली, लेकिन पहले कोई मानसिक परेशानी नहीं थी, तो सिर्फ डांटना से ही केस नहीं बनेगा।
इसे भी पढ़ें:  ट्रेन में दुर्घटना होने पर यात्रियों को मुआवज़ा कैसे मिलता है?

लगातार मानसिक प्रताड़ना हो तो मामला बन सकता है

  • अगर किसी को रोज़ाना गालियां दी जाएं, अपमानित किया जाए, या ताने मारे जाएं, तो यह मानसिक अत्याचार कहलाता है।
  • अगर इस वजह से किसी की मानसिक हालत बिगड़ जाए और वह आत्महत्या कर ले, तो उकसाने का केस बन सकता है।
  • उदाहरण: अगर एक लड़की को उसके ससुराल वाले रोज़ दहेज के लिए तंग करें, अपमान करें, और वह दुखी होकर जान दे दे, तो ससुराल वालों पर आत्महत्या के लिए उकसाने का केस हो सकता है।

जान देने के लिए बार-बार दबाव डालना अपराध है

  • अगर कोई बार-बार कहे कि “मर जा”, या ऐसा कोई दबाव डाले जिससे सामने वाला मानसिक रूप से टूट जाए, तो ये सीधा उकसाने का मामला बनता है।
  • उदाहरण: अगर कोई लड़का अपनी गर्लफ्रेंड को बार-बार धमकाए कि “अगर तुम मरोगी नहीं, तो मैं तुम्हारे सारे निजी राज सबको बता दूंगा”, और इसी डर या मानसिक दबाव में आकर वह लड़की आत्महत्या कर ले, तो यह आत्महत्या के लिए उकसाना माना जाएगा और लड़के पर केस बन सकता है।

आत्महत्या के लिए उकसाने का केस साबित करने के लिए ज़रूरी बातें

  • गाली या मानसिक चोट कितनी गंभीर थी: अगर किसी ने बस हल्की-फुल्की गाली दी या नाराज़ किया, तो उस पर केस नहीं बनता। लेकिन अगर बार-बार बुरी बातें कही गईं, धमकाया गया या बहुत मानसिक दबाव बनाया गया, तो केस बन सकता है।
  • लगातार परेशान करना: अगर आरोपी बार-बार तंग करता रहा हो, जैसे रोज़ बेइज़्ज़ती करना, डराना या मानसिक रूप से कमजोर करना, तो ये माना जाएगा कि उसने आत्महत्या के लिए उकसाया।
  • मानसिक असर और पीड़ित की हालत: पीड़ित के मन पर आरोपी की बातों का कितना असर हुआ, यह देखना जरूरी होता है। अगर पीड़ित ने अपने सुसाइड नोट या किसी मैसेज में साफ लिखा हो कि उसी इंसान की वजह से वह आत्महत्या कर रहा है, तो ये बड़ा सबूत माना जाएगा।
  • और भी सबूत: जैसे कोई गवाह, मोबाइल मैसेज, कॉल रिकॉर्डिंग, वीडियो या और कुछ जो दिखाए कि आरोपी की हरकतों की वजह से ही आत्महत्या हुई।

आत्महत्या के लिए उकसावे का मामला कैसे दर्ज होता है?

FIR दर्ज करने की प्रक्रिया

  • कौन कर सकता है शिकायत? पीड़ित का परिवार, दोस्त या कोई भी जानकार व्यक्ति पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करा सकता है।​
  • कहाँ और कैसे? शिकायत संबंधित पुलिस स्टेशन में जाकर दी जाती है। पुलिस शिकायत के आधार पर FIR दर्ज करती है।​
  • क्या जानकारी देनी होती है? शिकायत में घटना का समय, स्थान, आरोपी का नाम, और जो बातें आत्महत्या के लिए उकसाने का कारण बनीं, ये सभी जानकारी देनी होती है।

पीड़ित के परिवार की भूमिका: 

पीड़ित के परिवार को पुलिस को पूरी जानकारी देनी चाहिए, जैसे कि आत्‍महत्‍या से पहले के घटनाक्रम, कोई सुसाइड नोट, या ऐसे संदेश जो उकसावे को दर्शाते हों। इन तथ्‍यों से केस की जांच में मदद मिलती है।

इसे भी पढ़ें:  धारा 107 भारतीय दंड संहिता के तहत क्या कार्रवाई की जाती है?

पुलिस और मजिस्‍ट्रेट की भूमिका: 

पुलिस मामले की जांच करती है, गवाहों के बयान लेती है, और सबूत एकत्र करती है। यदि मामला गंभीर हो, तो मजिस्‍ट्रेट के सामने पेश किया जाता है। मजिस्‍ट्रेट यह सुनिश्चित करते हैं कि आरोप सही हैं और कानूनी प्रक्रिया का पालन हो रहा है।

केस को मजिस्‍ट्रेटी या सेशंस कोर्ट में चलाना: 

अधिकांश आत्‍महत्‍या के उकसावे के मामले सेशंस कोर्ट में चलाए जाते हैं, क्‍योंकि यह गंभीर अपराध है। मजिस्‍ट्रेट कोर्ट प्रारंभिक जांच करती है, और यदि मामला साबित होता है, तो सेशंस कोर्ट में सुनवाई होती है। अदालत में गवाहों के बयान, सबूत, और आरोपी की भूमिका पर विचार किया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने पति के ससुराल वालों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप खारिज किए, 2025

शेनबागवल्ली एवं अन्य बनाम पुलिस निरीक्षक के केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक पति के ससुराल वालों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि “नपुंसक” जैसे अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर नहीं है 

कोर्ट ने यह भी कहा कि ससुराल वालों की हरकतों और आत्महत्या के बीच कोई सीधा संबंध नहीं थासिर्फ मौखिक दुर्व्यवहार या गाली-गलौज, अगर इसमें लगातार क्रूरता या आत्महत्या को उकसाने का इरादा नहीं हो, तो यह आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप के लिए पर्याप्त नहीं है।

प्रकाश बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024)

 इस अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि धारा 306 IPC (आत्महत्या के लिए उकसावा) का केस तभी टिक सकता है जब आरोपी ने जानबूझकर या सीधे-सीधे किसी को आत्महत्या के लिए उकसाया हो। कोर्ट ने कहा कि उकसाने वाला व्यवहार आत्महत्या के बिल्कुल नजदीक के समय का होना चाहिए।

 इस केस में पति और उसके परिवार वालों पर आरोप था, लेकिन कोर्ट ने पाया कि उनके खिलाफ ऐसा कोई पक्का सबूत नहीं था जिससे यह साबित हो कि उनके व्यवहार की वजह से महिला ने आत्महत्या की। इसलिए कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया।

इस फैसले से यह साफ होता है कि सिर्फ आरोप लगाना काफी नहीं है, यह भी साबित करना जरूरी है कि आरोपी की हरकतें ही आत्महत्या की सीधी वजह बनीं।

शादी से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसावा नहीं है: सुप्रीम कोर्ट (2024)

सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें एक युवक पर आत्महत्या के लिए उकसाने का केस रद्द कर दिया गया। उस पर आरोप था कि उसने एक लड़की से शादी का वादा किया था, लेकिन बाद में मना कर दिया, जिससे लड़की ने आत्महत्या कर ली।

कोर्ट ने कहा कि सिर्फ शादी से इनकार कर देना, आत्महत्या के लिए उकसावा नहीं माना जा सकता। यह कोई ऐसा कदम नहीं है जो किसी को जान देने के लिए मजबूर करता हो।

इस फैसले से यह साफ हुआ कि प्यार में धोखा या शादी न होने जैसी निजी बातें सीधे-सीधे आपराधिक केस नहीं बनतीं, जब तक यह साबित न हो कि आरोपी ने जानबूझकर आत्महत्या के लिए उकसाया हो।

इसे भी पढ़ें:  पति की आत्महत्या के लिए ससुराल वाले पत्नी को दोष दे रहे हैं, तो क्या करें?

उधार वापस मांगना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं: सुप्रीम कोर्ट (2025)

महेंद्र अवस्थे बनाम मध्य प्रदेश राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि कर्ज (उधार) वापस मांगना आत्महत्या के लिए उकसाने जैसा अपराध नहीं है।

 कोर्ट ने यह भी बताया कि अगर कोई बार-बार पैसे लौटाने का कहे या थोड़ा दबाव डाले, तो सिर्फ इसी वजह से उस पर आत्महत्या के लिए उकसाने का केस नहीं बनता।

 यह फैसला यह समझने में मदद करता है कि आर्थिक दबाव और आत्महत्या के लिए कानूनी रूप से उकसाना, दोनों अलग बातें हैं।

नियोक्ता के कड़े आदेश आत्महत्या के लिए उकसाने के कारण नहीं: दिल्ली हाई कोर्ट (2024)

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महिला कॉलेज कर्मचारी की आत्महत्या के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि नियोक्ता के कड़े या सख्त आदेश जो काम के दौरान दिए जाते हैं, वो आत्महत्या के लिए उकसाने जैसा अपराध नहीं होते, जब तक कि उन आदेशों में आत्महत्या को उकसाने का इरादा न हो।

 कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अगर कोई कर्मचारी को मानसिक तनाव दे, लेकिन उसका इरादा आत्महत्या को उकसाने का न हो, तो यह कानूनी अपराध नहीं माना जाएगा।

निष्कर्ष

आत्महत्या के लिए उकसावा एक गंभीर अपराध है, जिसमें आरोपी के कार्यों या शब्दों और पीड़ित की आत्महत्या के फैसले के बीच सीधा संबंध साबित करना जरूरी है। सिर्फ मौखिक अपमान या गालियाँ पर्याप्त नहीं हैं, जब तक कि यह लगातार मानसिक क्रूरता या अत्यधिक दबाव का हिस्सा न हो। 

अगर आप पर ऐसे आरोप लगते हैं, तो एक अनुभवी वकील से सलाह लेना जरूरी है ताकि आपके अधिकारों की रक्षा हो सके और आप सही कानूनी प्रक्रिया से गुजर सकें।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1. क्या आत्महत्या के लिए उकसाने में सिर्फ गाली देना पर्याप्त है?

नहीं, कोर्ट के अनुसार सिर्फ गाली देना पर्याप्त नहीं है जब तक वह सीधा उकसावा न हो और मानसिक उत्पीड़न गंभीर न हो।

2. BNS 108 के तहत सजा क्या है?

अधिकतम 10 वर्ष की सजा और जुर्माना।

3. क्या आत्महत्या नोट जरूरी होता है केस साबित करने के लिए?

नहीं, लेकिन यह केस को मजबूत जरूर करता है। बिना नोट के भी साक्ष्य आधारित केस चल सकता है।

4. अगर कोई निराशाजनक बात कर दे और सामने वाला आत्महत्या कर ले तो क्या केस बनता है?

हर निराशाजनक बात को उकसावा नहीं माना जाता; केस की परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

5. क्या प्रेमी/प्रेमिका के ब्रेकअप पर आत्महत्या करने पर भी BNS 108 लग सकता है?

सिर्फ ब्रेकअप काफी नहीं, यदि मानसिक उत्पीड़न, धमकी या दबाव स्पष्ट रूप से सिद्ध हो, तभी केस बनता है।

Social Media