क्या नाबालिग की शादी के बाद भी पति पर पॉक्सो एक्ट लग सकता है?

Can the POCSO Act be applied on the husband even after the marriage of a minor

भारत में बाल विवाह कोई नई बात नहीं है। यह सदियों पुरानी सामाजिक प्रथा है, जिसे कई लोग अब भी परंपरा या संस्कार मानकर निभाते हैं। गांवों और कस्बों में आज भी लड़कियों की शादी 18 साल से पहले करवा दी जाती है। कई बार तो खुद माता-पिता यह सोचकर जल्द शादी करवा देते हैं कि बेटी की “इज्जत” और “सुरक्षा” शादी में ही है।

लेकिन आज का भारत बदल रहा है। शिक्षा, अधिकार और कानून अब हर बच्चे तक पहुँच बना रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है: क्या शादी हो जाने से नाबालिग लड़की के अधिकार खत्म हो जाते हैं? क्या पति को यह अधिकार मिल जाता है कि वह नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध बना सके? बिलकुल नहीं। कानून का मकसद बच्चों को हर स्थिति में सुरक्षा देना है, चाहे वह स्कूल में हो या शादीशुदा जीवन में। इसी सोच के साथ पॉक्सो एक्ट लागू किया गया है।

इस ब्लॉग का उद्देश्य है कि हम आपको यह समझाएं कि: पॉक्सो एक्ट क्या है? बाल विवाह का कानूनी दर्जा क्या है और नाबालिग पत्नी के साथ संबंध बनाने पर पति को कौन-कौन सी कानूनी सज़ा मिल सकती है।

क्या है पॉक्सो एक्ट?

पॉक्सो एक्ट, यानी प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसिस एक्ट, 2012, भारत सरकार द्वारा बनाया गया एक विशेष कानून है, जिसका मकसद 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से पूरी तरह सुरक्षा देना है। यह कानून बहुत ही सख्त और स्पष्ट है — इसमें उम्र, सहमति या संबंध का कोई बहाना नहीं चलता। इस एक्ट की प्रमुख बातें:

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कौन है “Child” या “बच्चा”?

  • पॉक्सो एक्ट के तहत, हर वह व्यक्ति जो 18 वर्ष से कम उम्र का है, “बच्चा” माना जाता है।
  • इसका मतलब है कि 17 साल 11 महीने की लड़की भी अगर शादीशुदा है, तब भी वह कानून में बच्चा ही मानी जाएगी।

कौन-कौन से अपराध शामिल हैं?

  • बलात्कार (Penetrative Sexual Assault)
  • छेड़छाड़ (Sexual Assault)
  • अश्लील हरकतें या इशारे (Sexual Harassment)
  • बच्चों को अश्लील सामग्री दिखाना या फैलाना
  • बच्चों को यौन व्यापार में धकेलना

सहमति का कोई महत्व नहीं:

  • अगर बच्चा खुद भी कहे कि वह सहमति से शारीरिक संबंध में है, तो भी वह अपराध माना जाएगा।
  • यह कानून बच्चों को खुद से भी सुरक्षित करता है।

स्पेशल कोर्ट और तेज़ सुनवाई:

  • हर जिले में पॉक्सो कोर्ट  होती है, जो इन मामलों की सुनवाई फास्ट-ट्रैक मोड में करती है।
  • पीड़िता की पहचान गुप्त रखी जाती है।
  • पुलिस और मेडिकल टीम को भी 24 से 48 घंटे में कार्रवाई करनी होती है।

पॉक्सो का मकसद: 

इस कानून का उद्देश्य सिर्फ सज़ा देना नहीं, बल्कि बच्चों की गरिमा, मानसिक और शारीरिक सुरक्षा को बनाए रखना है। यही वजह है कि चाहे बच्चा स्कूल में हो, घर में हो, या शादीशुदा, कानून उसकी रक्षा करता है।

भारत में नाबालिग की शादी का कानूनी दर्जा

भारत में शादी सिर्फ सामाजिक रस्म नहीं है, बल्कि एक लीगल कॉन्ट्रैक्ट भी है। लेकिन जब यह अनुबंध नाबालिग लड़के या लड़की के साथ होता है, तो यह कई कानूनी सवाल खड़े करता है।

प्रोहिबिशन ऑफ़ चाइल्ड मैरिज एक्ट, 2006 : भारत में बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार ने साल 2006 में यह विशेष कानून लागू किया। इसके तहत:

  • लड़के की वैध शादी की उम्र: 21 वर्ष
  • लड़की की वैध शादी की उम्र: 18 वर्ष
  • यदि यह उम्र पूरी होने से पहले शादी हो जाती है, तो उसे बाल विवाह माना जाएगा।
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क्या बाल विवाह अवैध है?

  • बाल विवाह को कानून ने अवैध” (illegal) नहीं बल्कि विलोपनीय” (voidable) करार दिया है।
  • इसका मतलब है कि वह शादी तब तक मान्य है, जब तक कि नाबालिग स्वयं उसे रद्द (nullify) करने की माँग न करे।

कब होती है शादी पूरी तरह वोयड?

  • जब बच्चा ज़बरदस्ती उठाया गया हो
  • जब लड़की को लालच, डर या दबाव में शादी के लिए मजबूर किया गया हो
  • जब दुल्हन या दूल्हा मानसिक रूप से विकलांग हो

मातापिता की भूमिका: अगर माता-पिता भी नाबालिग की शादी करवाते हैं, तो वो भी इस एक्ट के तहत सजा के पात्र हो सकते हैं। इसमें जुर्माना, जेल या दोनों सजा दी जा सकती है।

शादी के बावजूद पॉक्सो एक्ट लागू कैसे होता है?

  • पॉक्सो एक्ट और विवाह: भारत में, पॉक्सो एक्ट के तहत, 18 वर्ष से कम आयु की लड़की से विवाह के बावजूद यौन संबंध बनाना अपराध माना जाता है। यह कानून यह मानता है कि नाबालिग की सहमति वैध नहीं होती, और विवाह भी इस अपराध से मुक्ति नहीं दिलाता।
  • सहमति की कानूनी अनदेखी: पॉक्सो एक्ट में नाबालिग की सहमति को मान्यता नहीं दी जाती। इसका उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण से बचाना है, चाहे वह सहमति से हो या बिना सहमति के। इसलिए, यदि कोई नाबालिग लड़की विवाह के बावजूद यौन संबंध बनाने के लिए सहमत होती है, तो भी यह अपराध माना जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के महत्वपूर्ण निर्णय

  • इंडिपेंडेंट थॉट बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया (2017): सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में स्पष्ट किया कि 15 से 18 वर्ष की लड़की से विवाह के बावजूद यौन संबंध बनाना बलात्कार के समान होगा। इससे पहले, विवाह के भीतर बलात्कार को अपराध नहीं माना जाता था, लेकिन इस फैसले ने इसे बदल दिया।
  • NCPCR बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया (2020): राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी कि 18 वर्ष से कम आयु की लड़की से विवाह के बावजूद यौन संबंध बनाना पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार किया और इस मुद्दे पर विचार करने का आदेश दिया।
  • कर्नाटका उच्च न्यायालय का निर्णय: कर्नाटका उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि पत्नी 18 वर्ष से कम आयु की है, तो विवाह के बावजूद यौन संबंध बनाना पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध होगा। यह निर्णय मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत भी लागू होता है।
  • कानूनी सलाह: यदि आप या आपका कोई परिचित इस स्थिति में हैं, तो तुरंत एक योग्य वकील से संपर्क करें। पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध की गंभीरता को देखते हुए, कानूनी सहायता प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है।

नाबालिग पत्नी के अधिकार क्या है?

सुरक्षा का अधिकार (Right to Protection)

  • किसी भी प्रकार का यौन शोषण या बलात्कार उसके अधिकारों का उल्लंघन है और उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
  • नाबालिग पत्नी को पूरी तरह शारीरिक और मानसिक सुरक्षा की गारंटी होती है। यदि पति या परिवार के सदस्य द्वारा उसे खतरा होता है, तो वह कानून का सहारा ले सकती है।
  • वह सुरक्षा आदेश (Protection Order) और आवास आदेश (Residence Order) प्राप्त कर सकती है, यदि उसे खतरा महसूस होता है।
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विवाह रद्द करने का अधिकार (Right to Annul the Marriage)

  • एक नाबालिग लड़की को विवाह के बाद दो साल के भीतर शादी को रद्द करने का अधिकार होता है, जब वह बालिग हो जाती है।
  • नाबालिग लड़की स्वयं या उसके परिवार के किसी सदस्य द्वारा कानूनी रूप से विवाह को रद्द करने के लिए कोर्ट में याचिका दायर कर जा सकती है।
  • शादी को “विलोपनीय” (Voidable) माना जाता है, मतलब यह तभी प्रभावी होगा जब लड़की स्वयं उसे स्वीकार करे।

भरण-पोषण और मुआवजा मांगने का अधिकार (Right to Maintenance and Compensation)

  • नाबालिग पत्नी अंतरिम भरण-पोषण के लिए अदालत में याचिका दायर कर सकती है, ताकि उसे और उसके बच्चों को पर्याप्त वित्तीय सुरक्षा मिल सके।
  • अगर वह शारीरिक या मानसिक शोषण का शिकार हुई है, तो वह क़ानूनी कार्रवाई के साथ-साथ मुआवजा भी प्राप्त कर सकती है।

शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न से सुरक्षा (Protection from Physical and Mental Abuse)

  • महिला हेल्पलाइन नंबर या शेल्टर होम्स का सहारा ले सकती है।
  • पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा सकती है और अदालत में भी सुरक्षा की याचिका दायर कर सकती है।

शारीरिक संबंध बनाने का अधिकार (Right to Refuse Marital Rape)

  • अगर नाबालिग लड़की से शारीरिक संबंध बनाए जाते हैं, तो यह बलात्कार माने जाएंगे, और इसमें पति पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
  • वह विवाह के बाद भी सहमति के बिना शारीरिक संबंध बनाने से मना कर सकती है, और उसे किसी भी प्रकार के शारीरिक शोषण से बचाने के लिए कानूनी सुरक्षा का पूरा अधिकार है।

शिक्षा और विकास का अधिकार (Right to Education and Development)

  • बाल विवाह के बाद भी उसे अपने जीवन के सामान्य अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।
  • नाबालिग पत्नी को शिक्षा जारी रखने का, स्वास्थ्य सेवाओं का और समाज में समान अवसरों का अधिकार होता है। यदि उसके परिवार या पति ने उसे इन अधिकारों से वंचित किया, तो वह अदालत का सहारा ले सकती है।

पति के लिए संभावित दंड

  • पोक्सो एक्ट के तहत दंड: पोक्सो एक्ट के तहत, अगर कोई व्यक्ति 18 साल से कम उम्र के बच्चे (नाबालिग) से शारीरिक संबंध बनाता है, तो उसे 10 साल तक की सजा या आजीवन कारावास हो सकता है। इसके अलावा, आरोपी पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है, जो पीड़ित की सुरक्षा और देखभाल के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
  • भारतीय न्याय संहिता की धारा 64 (बलात्कार) के तहत दंड: यदि नाबालिग लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाए जाते हैं, तो यह बलात्कार माना जाएगा। इस अपराध के लिए आरोपी को 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। यदि बलात्कार के दौरान अन्य गंभीर तत्व मौजूद हों, जैसे शारीरिक हिंसा या चोटें, तो सजा और बढ़ाई जा सकती है।
  • जमानत: नाबालिग से शारीरिक शोषण और बलात्कार के मामलों में आरोपी को आसानी से जमानत नहीं मिलती। आरोपी को अग्रिम जमानत (anticipatory bail) प्राप्त करने की संभावना कम होती है। जब गंभीर सबूत होते हैं और अपराध की गंभीरता स्पष्ट होती है, तो आरोपी को जमानत मिलने की संभावना और भी घट जाती है।
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समाज और कानून के बीच संतुलन की आवश्यकता

बाल विवाह न केवल बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि यह समाज की सामाजिक संरचना और संस्कृति को भी प्रभावित करता है। समाज में परंपराओं और रीति-रिवाजों का पालन महत्वपूर्ण होता है, लेकिन जब ये परंपराएं बच्चों के अधिकारों के खिलाफ जाती हैं, तो उन्हें चुनौती देना आवश्यक हो जाता है। कानून समाज की सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करने के लिए होता है, और जब परंपराएं बच्चों के अधिकारों के खिलाफ जाती हैं, तो कानून का पालन करना आवश्यक हो जाता है।

निष्कर्ष

भारत में बाल विवाह और नाबालिगों के शारीरिक शोषण के खिलाफ सख्त कानून हैं, जैसे पॉक्सो एक्ट और बाल विवाह निषेध अधिनियम। इन कानूनों का उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा है। समाज में पारंपरिक प्रथाएँ अभी भी मौजूद हैं, लेकिन कानून के तहत नाबालिग के शारीरिक शोषण को अपराध माना जाता है। समाज और कानून के बीच संतुलन जरूरी है, ताकि बच्चों के अधिकारों की रक्षा की जा सके।

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FAQs

1. अगर नाबालिग लड़की के माता-पिता ने शादी करवाई हो तो भी पॉक्सो लगेगा?

हाँ, अगर नाबालिग लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाए जाते हैं, तो चाहे माता-पिता की सहमति हो या न हो, यह POCSO एक्ट और BNS धारा 64 के तहत बलात्कार और यौन शोषण माना जाएगा। नाबालिग की सहमति कानूनी रूप से मान्य नहीं होती।

2. क्या नाबालिग पत्नी के बालिग होने के बाद केस खत्म हो सकता है?

नहीं, यदि शादी के समय पत्नी नाबालिग थी और शारीरिक शोषण या बलात्कार हुआ था, तो POCSO एक्ट के तहत मामला जारी रहेगा, भले ही वह अब बालिग हो गई हो।

3. बाल विवाह रद्द करने के लिए कौन-कौन आवेदन कर सकता है?

नाबालिग लड़की, उसके माता-पिता, या अभिभावक इस प्रकार के विवाह को रद्द करने के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसके अलावा, कोई भी व्यक्ति जो समाज में बाल विवाह के खिलाफ जागरूक हो, वह भी अदालत में आवेदन कर सकता है।

4. क्या नाबालिग लड़की के खिलाफ भी कोई केस हो सकता है अगर वह पति के साथ सहमति से रहती हो?

नहीं, नाबालिग लड़की के खिलाफ कोई केस नहीं हो सकता, क्योंकि कानूनी दृष्टिकोण से नाबालिग की सहमति वैध नहीं मानी जाती है। कानूनी रूप से नाबालिग की सुरक्षा का अधिकार प्राथमिक है।

5. नाबालिग के साथ बलात्कार के आरोपी को कितनी सजा हो सकती है?

POCSO एक्ट और BNS धारा 64 के तहत बलात्कार के आरोपी को आजीवन कारावास और 10 साल से ज्यादा की सजा हो सकती है, और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यह सजा मामले की गंभीरता और सबूतों के आधार पर तय की जाती है।

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