जब देश में महामारी, दंगे, या प्राकृतिक आपदा जैसे गंभीर हालात उत्पन्न होते हैं, तो सरकारें सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष अधिकारों का प्रयोग करती हैं। ऐसे समय में आम नागरिकों को यह जानना आवश्यक है कि आपातकाल के दौरान भी उनके कुछ मौलिक अधिकार सुरक्षित रहते हैं, जो उन्हें अन्याय और शोषण से बचाते हैं।
भारतीय संविधान और इमरजेंसी से जुड़े कानूनों के तहत आपको कुछ बुनियादी सुरक्षा और स्वतंत्रता मिलती है, जिनका सम्मान जरूरी है, चाहे हालात कितने भी गंभीर क्यों न हों। इन अधिकारों की जानकारी आपको सही निर्णय लेने में मदद करती है और आपको किसी भी गलत या अवैध व्यवहार से बचा सकती है।
अब हम यह समझेंगे कि इमरजेंसी के समय आपके कौन-कौन से कानूनी अधिकार सुरक्षित रहते हैं, ये कैसे सीमित हो सकते हैं, और अगर आपके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तो आपको क्या कदम उठाने चाहिए।
इमरजेंसी क्या है?
भारत एक लोकतांत्रिक देश है, लेकिन संविधान ने कुछ विशेष परिस्थितियों में सरकार को असाधारण शक्तियाँ भी दी हैं, जिन्हें ” इमरजेंसी ” कहा जाता है। जब देश की सुरक्षा, शासन या आर्थिक स्थिरता को गंभीर खतरा होता है, तब संविधान के तहत केंद्र सरकार को इमरजेंसी की घोषणा करने का अधिकार होता है।
भारत के संविधान में इमरजेंसी की व्यवस्था तीन मुख्य अनुच्छेदों के तहत की गई है, नेशनल इमरजेंसी, स्टेट इमरजेंसी और फिनांशल इमरजेंसी।
इमरजेंसी के प्रकार और उनका कानूनी प्रभाव
1. नेशनल इमरजेंसी (National Emergency – Article 352)
- घोषणा कब होती है: जब भारत की सुरक्षा को एक्सटर्नल अग्रेशन, इंटरनल रिबेलियन और आर्म्ड रिबेलियन से खतरा हो, तब राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रीय इमरजेंसी की घोषणा कर सकते हैं।
- अधिकारों पर प्रभाव:
- इस समय केंद्र सरकार को राज्यों पर पूर्ण नियंत्रण मिल जाता है।
- संसद को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है।
- अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता) जैसे मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है।
2. स्टेट इमरजेंसी (President’s Rule – Article 356)
- क्या होता है: यदि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था विफल हो जाए, और वहां की सरकार संविधान के अनुसार कार्य न कर रही हो, तब राष्ट्रपति उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकते हैं।
- नागरिकों पर प्रभाव:
- आमतौर पर सीधे मौलिक अधिकारों पर असर नहीं होता।
- लेकिन राज्य में चुनी हुई सरकार हट जाने से लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व समाप्त हो जाता है, जिससे नीतिगत निर्णयों में जनता की भागीदारी कम हो जाती है।
3. फिनांशल इमरजेंसी (Financial Emergency – Article 360)
- घोषणा कब होती है: जब देश की आर्थिक स्थिरता को खतरा हो, या केंद्र सरकार यह माने कि वित्तीय इमरजेंसी जरूरी है।
- असर:
- राष्ट्रपति राज्यों को वित्तीय निर्देश दे सकते हैं।
- सरकारी कर्मचारियों के वेतन, भत्तों में कटौती की जा सकती है।
- यहां भी कुछ अधिकारों पर अप्रत्यक्ष असर पड़ सकता है, लेकिन जीवन व स्वतंत्रता पर सीधा प्रभाव नहीं होता।
इमरजेंसी लगने पर आपके किन अधिकारों पर प्रतिबंध लगता है?
1. अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता का अधिकार)
अनुच्छेद 19 के तहत नागरिकों को अभिव्यक्ति, एकत्र होने, घूमने, संघ बनाने, निवास करने और व्यवसाय करने की स्वतंत्रता मिलती है। इमरजेंसी के दौरान, यदि सरकार मानती है कि इन अधिकारों का उपयोग देश की सुरक्षा, संप्रभुता, सार्वजनिक व्यवस्था या शालीनता के खिलाफ हो सकता है, तो इन पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कर्फ्यू, मीडिया सेंसरशिप या सार्वजनिक सभाओं पर रोक लगाई जा सकती है।
2. अनुच्छेद 21 और 22 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार)
- पहले: 1975 की इमरजेंसी में इन अधिकारों को भी सस्पेंड कर दिया गया था।
- बाद में: 44वें संविधान संशोधन (1978) के बाद, यह तय किया गया कि अनुच्छेद 21 और 22 को कभी पूरी तरह निलंबित नहीं किया जा सकता।
इमरजेंसी (Emergency) में Article 22 और 44वां संशोधन (1978)
- 1975-77 के दौरान इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी (Emergency) में नागरिक स्वतंत्रता को काफी दबा दिया था।
- बाद में जनता सरकार ने 44वें संविधान संशोधन के जरिए यह सुनिश्चित किया कि भविष्य में भी आपातकाल के दौरान:
- Article 20 और Article 21 को निलंबित नहीं किया जा सके।
- गिरफ्तारी और हिरासत के मामलों में अत्यधिक मनमानी न हो।
- इसके साथ-साथ Preventive Detention कानूनों की सीमा और शर्तें भी तय की गईं, Advisory Board का गठन अनिवार्य किया गया।
इमरजेंसी (Emergency) में Article 22 का Actual Role
क्या Emergency में Article 22 पूरी तरह खत्म हो जाता है? | नहीं, सिर्फ Preventive Detention में कुछ अधिकार सीमित होते हैं |
Preventive Detention में कौन-कौन से अधिकार नहीं मिलते? | गिरफ्तारी का कारण बताना, वकील से मिलना, 24 घंटे में मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना |
कितने समय में Advisory Board के सामने केस पेश करना जरूरी? | 3 महीने के भीतर |
क्या सामान्य आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी पर Article 22 लागू रहता है? | हाँ, पूरी तरह से लागू रहता है |
जिन अधिकारों को नहीं छीना जा सकता
भारतीय संविधान में नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, जिन्हें इमरजेंसी के दौरान भी पूरी तरह से निलंबित नहीं किया जा सकता। इनमें से दो महत्वपूर्ण अधिकार हैं:
अनुच्छेद 20: दोबारा सजा नहीं हो सकती (Double Jeopardy) और आत्म-गवाह बनने से बचाव
अनुच्छेद 20 के तहत:
- किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दोबारा सजा नहीं दी जा सकती।
- किसी को भी खुद को दोषी मानने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
- यह अधिकार इमरजेंसी के दौरान भी लागू रहता है, क्योंकि यह न्यायिक प्रक्रिया की बुनियादी सुरक्षा है।
अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
अनुच्छेद 21 के तहत:
- हर व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है।
- इसे उचित प्रक्रिया के बिना छीना नहीं जा सकता।
इमरजेंसी के दौरान भी, यह अधिकार पूरी तरह से निलंबित नहीं किया जा सकता। हालांकि, 1975 की इमरजेंसी के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला (1976) केस में यह निर्णय दिया था कि अनुच्छेद 21 को निलंबित किया जा सकता है। लेकिन, इस निर्णय की आलोचना हुई और 44वें संविधान संशोधन (1978) के माध्यम से इसे स्पष्ट किया गया कि अनुच्छेद 21 को इमरजेंसी के दौरान भी पूरी तरह से निलंबित नहीं किया जा सकता।
बिनोद राव बनाम मिनोचर रस्टम मसानी (1976): बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में प्रेस सेंसरशिप के आदेशों को चुनौती दी। अदालत ने कहा कि सेंसरशिप का उद्देश्य लोकतंत्र की हत्या नहीं, बल्कि उसकी रक्षा करना होना चाहिए। इस निर्णय ने प्रेस की स्वतंत्रता की अहमियत को रेखांकित किया
अनुच्छेद 22:- कुछ मामलों में गिरफ्तारी और नजरबंदी से संरक्षण
- सरकार आपातकाल के समय Preventive Detention Laws (जैसे MISA – Maintenance of Internal Security Act) लागू कर सकती है।
- अनुच्छेद 22(3)/ Article 22(3) कहता है कि अगर कोई व्यक्ति Enemy Alien है या उसे Preventive Detention में रखा गया है, तो उसे अनुच्छेद 22(1) और 22(2)/Article 22(1) और 22(2) में दी गई सुरक्षा नहीं मिलेगी।
यानी:- उसे गिरफ्तारी की वजह तुरंत बताने की जरूरत नहीं।
- उसे 24 घंटे में मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने की जरूरत नहीं।
- वकील से संपर्क का अधिकार भी रोका जा सकता है।
नोट:- यह छूट सिर्फ Preventive Detention के मामलों में है। सामान्य गिरफ्तारी (criminal offence की गिरफ्तारी) के मामलों में Article 22 की सामान्य सुरक्षा बनी रहती है
महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार जो Emergency में भी रहते हैं:
अधिकार | Emergency में स्थिति |
Article 14: समानता का अधिकार | सामान्यतः लागू रहता है |
Article 20: दंड प्रक्रिया में सुरक्षा | निलंबित नहीं किया जा सकता |
Article 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता | निलंबित नहीं किया जा सकता |
Article 19: स्वतंत्रता का अधिकार | केवल राष्ट्रीय आपातकाल में निलंबित हो सकता है |
Article 32: रिट याचिका का अधिकार | राष्ट्रीय आपातकाल में निलंबित हो सकता है |
कानूनी मदद और न्याय पाने के रास्ते
इमरजेंसी के समय भी आम लोगों के पास न्याय पाने के कई रास्ते होते हैं। अगर आपके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, तो आप इन तरीकों से मदद ले सकते हैं:
- कोर्ट का सहारा लेना: अगर आपके साथ अन्याय हुआ है, तो आप अदालत में याचिका दाखिल कर सकते हैं। जरूरत पड़ने पर जनहित याचिका (PIL) भी दाखिल की जा सकती है। कोर्ट नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने वाला सबसे बड़ा माध्यम होता है।
- मानवाधिकार आयोग से शिकायत: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और राज्य मानवाधिकार आयोग उन मामलों की जांच करते हैं जहाँ किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ हो। आप लिखित में या ऑनलाइन भी शिकायत कर सकते हैं।
- मुफ़्त कानूनी सहायता लेना: अगर आपके पास वकील की फीस भरने के लिए पैसे नहीं हैं, तो आप मुफ्त कानूनी सहायता ले सकते हैं। “लीगल सर्विसेस अथॉरिटीज़ एक्ट” के तहत गरीब और ज़रूरतमंद लोगों को मुफ्त वकील और सलाह मिलती है।
मीडिया की भूमिका और अभिव्यक्ति की आज़ादी
इमरजेंसी के समय मीडिया का बहुत अहम रोल होता है, क्योंकि यह लोगों तक सही जानकारी पहुँचाता है। लेकिन जब देश में संकट या तनाव होता है, तो कई बार सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखने के लिए जानकारी फैलाने पर कुछ सीमाएं लगा सकती है। नागरिकों को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- जानकारी की जांच करें: जो भी खबर या जानकारी आप सुनते या शेयर करते हैं, पहले यह ज़रूर देख लें कि वह भरोसेमंद और सही स्रोत से आई है। अफ़वाहों से बचें।
- सरकारी नियमों का पालन करें: अगर सरकार किसी खास जानकारी को ना फैलाने का आदेश देती है, तो उसका पालन करें। यह देश की सुरक्षा के लिए होता है।
- सोच-समझकर जानकारी साझा करें: अगर आप कोई संवेदनशील जानकारी सोशल मीडिया या कहीं और शेयर करते हैं, तो उसके असर के बारे में सोचें। आपकी एक पोस्ट से किसी की जान या देश की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
नागरिकों की ज़िम्मेदारियाँ
- पुलिस, सेना या सरकारी अफसरों द्वारा दिए गए कानून के अनुसार आदेशों का पालन करना ज़रूरी है। इससे हालात को जल्दी संभाला जा सकता है।
- ऐसे कोई भी बयान या हरकत न करें जिससे झगड़ा बढ़े या तनाव पैदा हो। सोशल मीडिया पर भी सोच-समझकर कुछ शेयर करें।
- अपने आसपास शांति बनाए रखें, एक-दूसरे की मदद करें और समाज में मेल-जोल बढ़ाने वाली बातों को बढ़ावा दें।
न्यायिक निर्णय
गांता जय कुमार बनाम तेलंगाना राज्य (2020)
तेलंगाना उच्च न्यायालय ने 20 मई 2020 को यह निर्णय लिया कि COVID-19 परीक्षण और उपचार के लिए केवल सरकारी अस्पतालों पर निर्भर रहने का सरकारी आदेश संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। अदालत ने नागरिकों को अपनी पसंद के निजी अस्पतालों में परीक्षण और उपचार का अधिकार दिया।
सुप्रीम कोर्ट – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में नागरिकों के सरकार की आलोचना करने और असहमति व्यक्त करने के अधिकार की रक्षा की। अदालत ने यह माना कि शांतिपूर्ण विरोध लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है और इसे संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत संरक्षित किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट – निजता का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने इमरजेंसी के दौरान नागरिकों को हिरासत में लेने के संबंध में एक विवादास्पद निर्णय को पलटते हुए यह स्पष्ट किया कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित किया गया है।
निष्कर्ष
संघर्ष के समय में अपने कानूनी अधिकारों को समझना बहुत ज़रूरी है, ताकि अपनी सुरक्षा और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की जा सके। भारत और पाकिस्तान के बीच जो हालात हैं, वे मुश्किल हैं, लेकिन संविधान के सिद्धांतों का पालन और कानून का आदर करना हमें इन कठिन समयों से सही तरीके से निपटने में मदद करेगा।
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FAQs
1. क्या इमरजेंसी के दौरान सभी मौलिक अधिकार सस्पेंड हो जाते हैं?
नहीं, अनुच्छेद 20 और 21 जैसे कुछ अधिकार नहीं छीने जा सकते।
2. क्या इमरजेंसी के दौरान गिरफ्तारी के खिलाफ कोई सुरक्षा मिलती है?
44वें संशोधन के बाद अब हैबियस कॉर्पस जैसे अधिकार सुरक्षित हैं।
3. क्या अदालतें इस समय में सुनवाई करती हैं?
हाँ, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट दोनों मौलिक अधिकारों की सुनवाई कर सकते हैं।
4. क्या राष्ट्रपति शासन में आम नागरिकों के अधिकार खत्म हो जाते हैं?
नहीं, केवल राज्य सरकार हटाई जाती है, नागरिक अधिकार यथावत रहते हैं।
5. क्या इमरजेंसी में सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट करना प्रतिबंधित हो सकता है?
हाँ, इमरजेंसी में सोशल मीडिया पोस्ट पर प्रतिबंध लग सकता है यदि वह राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित करे।